Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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प्रमुख एवं प्रभावक परम्परापोषक- आचार्यों का संक्षिप्त परिचय निम्नानुसार हैआचार्य पार्श्वदेव
आचार्य पार्श्वदेव लौकिक-विषयों के मर्मज्ञ पण्डित हैं। इन्होंने अन्य शास्त्रों के साथ संगीतशास्त्र - सम्बन्धी ग्रन्थ की रचना की है। पार्श्वदेव महादेवार्य के शिष्य और अभयचन्द्र के प्रशिष्य थे। कृष्णमाचार्य ने इन्हें श्रीकान्त जाति के 'आदिदेव' एवं 'गौरी' का पुत्र बताया है। इनकी 'श्रुतज्ञानचक्रवर्ती', 'संगीतकार' और 'भाषाप्रवीण' उपाधियाँ थीं। श्रीनारायण मोरेश्वर खरे ने पार्श्वदेव को दाक्षिणात्य अनुमानित किया है। 'संगीतसमयसार' में केवल देशी संगीत पर ही विचार किया गया है।
पार्श्वदेव का समय 12वीं शताब्दी का अन्तिम पाद या 13वीं शताब्दी का प्रथम पाद होना सम्भव है। पार्श्वदेव की 'संगीतसमयसार' नामक एक ही कृति उपलब्ध है। ग्रंथ नव-अधिकरणों में समाप्त हुआ है। इस प्रकार पार्श्वदेव ने अपने इस ग्रन्थ में संगीत की उपादेयता स्वीकार की है और इसे समाधिप्राप्ति का कारण माना है। अतः धर्मशास्त्र के समान ही संगीतशास्त्र का महत्त्व स्वीकार किया है। आचार्य भास्करनन्दि
तत्त्वार्थ के टीकाकारों में भास्करनन्दि का अपना स्थान है। भास्करनन्दि के गुरु का नाम जिनचन्द्र और जिनचन्द्र के गुरु का नाम सर्वसाधु था। भास्करनन्दि का समय विक्रम-संवत् 16वीं शती है। भास्करनन्दि की एक रचना उपलब्ध है 'तत्त्वार्थसूत्रवृत्ति' – सुखसुबोधटीका । इसका प्रकाशन मैसूर विश्वविद्यालय ने किया है। टीकाकार ने पूज्यपाद के साथ अकलंक और विद्यानन्द के ग्रंथों से भी प्रभाव अर्जित किया है। इस वृत्ति की प्रमुख विशेषतायें इसप्रकार हैं- विषय- स्पष्टीकरण के साथ नवीन सिद्धान्तों की स्थापना, पूर्वाचायों द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों को आत्मसात् कर उनका अपने रूप में प्रस्तुतीकरण, ग्रंथान्तरों के उद्धरणों का प्रस्तुतीकरण, मूल मान्यताओं का विस्तार एवं पूज्यपाद की शैली का अनुसरण करने पर भी मौलिकता का समावेश। इनकी एक अन्य रचना 'ध्यानस्तव' भी है, जो रामसेन के 'तत्त्वानुशासन' के आधार पर रचित है।
आचार्यं ब्रह्मदेव
अध्यात्मशैली के टीकाकारों में आचार्य ब्रह्मदेव का नाम उल्लेखनीय है। ये जैनसिद्धान्त के मर्मज्ञ विद्वान् थे। श्री पण्डित परमानन्द जी शास्त्री ने अपने एक निबन्ध में बताया है कि 'द्रव्यसंग्रह' के रचयिता नेमिचन्द्र सिद्धान्तदेव, वृत्तिकार ब्रह्मदेव और सोमराज श्रेष्ठि ये तीनों ही समसामयिक हैं। उत्थानिकावाक्य से यह स्पष्ट है कि ब्रह्मदेव की टीका और द्रव्यसंग्रह दोनों ही भोज के काल में रचे गये हैं। अतएव ब्रह्मदेव का समय विक्रम संवत् की 12वीं शताब्दी होना चाहिये।
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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