Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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आचार्य वज्रनन्दि
मल्लिषेणप्रशस्ति में वज्रनन्दि का नाम आया है, इन्हें 'नवस्तोत्र' का रचयिता बताया है। ये वही वज्रनन्दि मालूम होते हैं, जो पूज्यपाद के शिष्य थे और जिन्हें देवसेनसूरि ने अपने 'दर्शनसार' में द्राविडसंघ का संस्थापक बतलाया है। 'नवस्तोत्र' के अतिरिक्त इनका कोई प्रमाणग्रन्थ भी था। जिनसेन के उल्लेख से इनके किसी सिद्धान्तग्रन्थ के होने की भी सम्भावना की जा सकती है। आचार्य महासेन द्वितीय
जिनसेन प्रथम ने अपने हरिवंशपुराण में 'सुलोचनाकथा' के रचयिता महासेन का उल्लेख किया है। धवल कवि ने भी अपभ्रंश के 'हरिवंशपुराण' में 'सुलोचनाकथा' की प्रशंसा की है। 'कुवलयमाला' के रचयिता उद्योतनसूरि ने भी महासेनकवि की सुलोचनाकथा की चर्चा की है। यह कथा सम्भवतः प्राकृत में रही होगी।
उद्योतनसूरि ने जिनसेन प्रथम से 5 वर्ष पूर्व अपने ग्रन्थ की रचना की है। अतएव यह निश्चित है कि दोनों के द्वारा प्रशंसित 'सुलोचनाकथा' एक ही है। अतः महासेन का समय ईस्वी सन् की 8वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध या 9वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध होना चाहिये। आचार्य सुमतिदेव
मल्लिषेणप्रशस्ति में सुमतिदेव नाम के आचार्य का उल्लेख है, जो 'सुमतिसप्तक' के रचयिता हैं। मल्लिषेणप्रशस्ति में कुन्दकुन्द, समन्तभद्र, सिंहनन्दि, वक्रग्रीव, वज्रनन्दि और पात्रकेसरी के पश्चात् सुमतिदेव की स्तुति किये जाने के कारण इनका समय 7वीं-8वीं शताब्दी अनुमानित किया है। आचार्य पद्मसिंह मुनि
पद्मसिंहमुनि ने 'ज्ञानसार' नामक प्राकृत-ग्रन्थ की रचना विक्रम संवत् 1086 में 'अम्बक' नाम के नगर में की है। पद्मसिंहमुनि ने यह रचना 63 गाथायें, 74 श्लोक प्रमाण में रची हैं। इन गाथाओं से स्पष्ट है कि कवि ज्ञान, प्रमाण, नय, कर्मसिद्धान्त आदि विषयों का पूर्ण ज्ञाता है। आचार्य माधवचन्द्र त्रैविद्य
माधवचन्द्र नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती के शिष्य माधवचन्द्र विद्य हैं, जिनहोंने अपने गुरु की सम्मति से कुछ गाथायें यत्र-तत्र समाविष्ट की हैं। आचार्य जुगलकिशोर मुख्तार और प्रेमीजी दोनों ही 'गोम्मटसार' में उल्लिखित तथा 'त्रिलोकसार' के संस्कृतटीकाकार को नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती का शिष्य मानते हैं,
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भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ