Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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आचार्य रामसेनाचार्य
आचार्य रामसेनाचार्य 'तत्त्वानुशासन' के कर्ता थे। 'तत्त्वानुशासन' के अन्त में प्रशस्ति दी गयी है, जिसमें आचार्य ने अपने विद्यागुरु और दीक्षागुरु का निर्देश किया है।
'तत्त्वानुशासन' के रचयिता मुनि रामसेन सेनगण के आचार्य हैं। रामसेनाचार्य गुणभद्र के उत्तरकालीन हैं। गुणभद्र का 'उत्तरपुराण' शक-संवत् 950 में पूर्ण हुआ है। अतएव रामसेन के समय की पूर्वसीमा 950 तक पहुँच जाती है। रामसेन का समय ईस्वी सन् की 11वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध है।
तत्त्वानुशासन' नामक ग्रंथ में 259 पद्य हैं। इस ग्रंथ का प्रकाशन माणिकचन्द्र ग्रंथमाला के ग्रंथांक 13 में किया गया है। इस प्रकाशन में इस ग्रंथ के रचयिता नागसेन बतलाये हैं, पर आचार्य जुगलकिशोर मुख्तार ने इस ग्रन्थ का संशोधित संस्करण प्रकाशित किया है, जिसमें इसके रचयिता रामसेनाचार्य सिद्ध किये हैं। यह ग्रन्थ अध्यात्म-विषयक है और स्वानुभूति से अनुप्राणित है। इस ग्रन्थ में विस्तारपूर्वक ध्यान का वर्णन आया है। आचार्य गणधरकीर्ति ___आचार्य गणधरकीर्ति अध्यात्म-विषय के विद्वान् हैं। ये दर्शन-व्याकरण और साहित्य के पारंगत विद्वान् थे। गद्य और पद्य - दोनों में लिखने की क्षमता इनमें विद्यमान थी। अध्यात्मतरंगिणी के टीकाकार के रूप में गणधरकीर्ति की ख्याति है। ये गुजरात प्रदेश के निवासी थे। इन्होंने अपनी यह टीका सोमदेव नाम के किसी व्यक्ति के अनुरोध से रची है। यह टीका गुजरात के चालुक्यवंशी राजा जयसिंह या सिद्धराज जयसिंह के राज्यकाल में समाप्त की थी। विक्रम संवत् 1189, चैत्र शुक्ला पंचमी, रविवार, पुष्य नक्षत्र में इस टीका की रचना की गयी थी।
श्री पं. परमानन्द जी शास्त्री ने इसकी दो पाण्डुलिपियों की चर्चा की है। एक पाण्डुलिपि 'ऐलक पन्नालाल दिगम्बर जैन सरस्वती भवन, झालरापाटन' में है। यह प्रति विक्रम संवत् 1533 आश्विन शुक्ल द्वितीया के दिन 'हिसार' में लिखी गयी है। यह प्रति सुनामपुर के वासी खण्डेलवालवंशी संघाधिपति श्रावक कल्हू के चार पुत्रों में से प्रथम पुत्र धीरा की पत्नी धनश्री के द्वारा अपने ज्ञानावरणी कर्म के क्षयार्थ लिखकर तात्कालिक भट्टारक जिनचन्द्र के शिष्य पण्डित मेधावी को प्रदान की है। दूसरी प्रति पाटन के श्वेताम्बरी शासभण्डार में है। आचार्य भट्टवोसरि
आचार्य भट्टवोसरि ज्योतिष और निमित्तशास्त्र के आचार्य हैं। ये दिगम्बराचार्य दामनन्दि के शिष्य थे। भट्टवोसरि ने गुरु दामनन्दि के पास से आयों का रहस्य प्राप्त कर आय-विषयक सम्पूर्ण शास्रों के साररूप में यह ग्रन्थ लिखा है। इस ग्रन्थ पर
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भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ