Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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‘ज्वालमालिनीकल्प' मन्त्रशास्त्र का उत्कृष्ट ग्रन्थ है। प्रस्तुत ग्रन्थ दस
परिच्छेदों में विभक्त है, जिनके नाम इस प्रकार हैं
1. मन्त्रीलक्षण अर्थात् दिव्यस्त्रीग्रह, दिव्यपुरुषग्रह,
मन्त्रसाधक के लक्षण; 2. दिव्यादिव्यग्रह अदिव्यस्त्रीग्रह, अदिव्यपुरुषग्रह; 3. सकलीकरणक्रिया - अशुद्धि, बीजाक्षरज्ञान; 4. मण्डलपरिज्ञान • सामान्यमण्डल, सर्वतोभद्रमण्डल आदि मण्डलों का विवेचन; 5. भताकम्पन तैल; 6. रक्षास्तम्भन वश्य प्रकरण; 7. वशीकरण प्रकरण; 8. पूजनविधि प्रकरण; 9. नीराजनविधि; एवं 10. शिष्यपरीक्षा एवं शिष्यप्रदेयस्तोत्र आदि विवरण |
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इस मन्त्रग्रन्थ में भारती की 8-9वीं शती की मान्त्रिक - परम्परा का संकलन किया गया है। आचार्य ने जहाँ-तहाँ पंचपरमेष्ठी और उनके बीजाक्षरों का निर्देश कर सामान्य मन्त्र-परम्परा को जैनत्व का रूप दिया है। जैनदर्शन और जैन-त - तत्त्वज्ञान के साथ इसका कोई भी मेल नहीं है, पर लोकविधि के अन्तर्गत इसकी उपयोगिता है। मध्यकाल में फलाकांक्षी व्यक्ति श्रद्धान से विचलित हो रहे थे, अतः उस युग में जैन- मन्त्रों का विधान कर जनसाधारण को इस लोकैषणा में स्थित किया है। आचार्य जिनचन्द्राचार्य
'सिद्धान्तसार' ग्रन्थ के रचयिता जिनचन्द्राचार्य हैं। तत्त्वार्थ की सुखबोधिकाटीका में जो प्रशस्ति प्राप्त होती हैं, उसमें भास्करनन्दि के गुरु जिनचन्द्र सिद्धान्तशास्त्रों के पारंगत विद्वान् बतलाये गये हैं। सिद्धान्तसारग्रन्थ का अध्ययन करने से यह ज्ञात होता है कि इस ग्रन्थ पर 'गोम्मटसार जीवकाण्ड' और 'कर्मकाण्ड' इन दोनों का प्रभाव है। आचार्य नेमिचन्द्र के गोम्मटसार का अध्ययन कर ही इस ग्रन्थ की रचना जिनचन्द्र ने की है। सिद्धान्तसार की प्रारम्भिक गाथायें गोम्मटसार जीवकाण्ड से पूर्णतया प्रभावित हैं।
जिनचन्द्र का समय नेमिचन्द्र और प्रभाचन्द्र के मध्य में होना चाहिये। अर्थात् ईस्वी सन् की 11वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध या 12वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध निश्चित है। जिनचन्द्र का सिद्धान्तसार प्राकृत भाषा में निबद्ध उपलब्ध है। इस ग्रन्थ पर ज्ञानभूषण का संस्कृत भाष्य भी है। इसका प्रकाशन 'माणिकचन्द्र' ग्रन्थमाला से 'सिद्धान्तसारादिसंग्रह' के रूप में हो चुका है। इस लघुकाय ग्रन्थ में पर्याप्त सैद्धान्तिक विषयों की चर्चा आयी है।
आचार्य श्रीधराचार्य
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
श्रीधराचार्य गणितसार, जातकतिलक, कन्नड़ लीलावती, ज्योतिर्ज्ञानविधि आदि ज्योतिष - विषयक ग्रन्थों के रचयिता हैं।
श्रीधराचार्य के ‘जातकतिलक' का रचनाकाल ईस्वी सन् 1049 है। अतः
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