Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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है, जो उपलब्ध तथा प्रकाशित है।38 इस महाकाव्य में 18 सर्ग और 1697 पद्य हैं। कवि ने संस्कृत के सभी प्रसिद्ध छन्दों का इसमें प्रयोग किया है। आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ का इसमें जीवन-चरित वर्णित है। रचना बड़ी सरस और हृदयग्राही है। आचार्य महासेन
महासेन लाट-वर्गट या लाड़-बागड़ संघ के आचार्य थे। गुणाकरसेन के शिष्य महासेनसूरि हुये, जो राजा मुंज द्वारा पूजित थे और सिन्धुराज या सिन्धुल के महामात्य पर्पट ने जिनके चरणकमलों की पूजा की थी। इन्हीं महासेन 'प्रद्युम्नचरित' काव्य की रचना की और राजा के अनुचर विवेकवान् मद्यन ने इसे लिखकर कोविदजनों को दिया।
लाट-वर्गटसंघ माथुरसंघ के ही समान काष्ठासंघ की शाखा है। यह संघ गुजरात और राजपूताने में विशेष रूप से निवास करता था। कवि आचार्य महासेन पर्पट के गुरु थे। इससे यह स्पष्ट है कि आचार्य महासेन का व्यक्तित्व अत्यन्त उन्नत था और राजपरिवारों में उनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी।
आचार्य महासेन का समय 10वीं शती का उत्तरार्द्ध है। आचार्य महासेन का 'प्रद्युम्नचरित' महाकाव्य उपलब्ध है। इस काव्य में 14 सर्ग हैं। परम्परा-प्राप्त कथानक को आचार्य ने महाकाव्योचित रूप प्रदान किया है। प्रस्तुत महाकाव्य का कथानक श्रृंखलाबद्ध एवं सुगठित है। काव्य-प्रवाह को स्थिर एवं प्रभावोत्पादक बनाये रखने क लिये अवान्तर-कथायें भी गुम्फित हैं। रचना सरस और रोचक है। आचार्य हरिषेण
हरिषेण नाम के कई आचार्य हुये हैं। डॉ. एन. एन. उपाध्ये१० ने छः हरिषेण नाम के ग्रन्थकारों का निर्देश किया है। हरिषेण के दादागुरु के गुरु मौनी भट्टारक जिनसेन की उत्तरवर्ती दूसरी, तीसरी पीढ़ी में हुये होंगे। हरिषेण पुन्नाट संघ के आचार्य हैं और इसी पुन्नाट संघ में 'हरिवंशपुराण' के कर्ता जिनसेन प्रथम भी हुये हैं।
हरिषेण ने कथाकोश की रचना वर्द्धमानपुर में की है। इस स्थान को डॉ. ए. ए. उपाध्ये काठियावाड़ का बड़वान मानते हैं। शक-संवत् 853, विक्रम संवत् 988 (ईस्वी सन् 931) में कथाकोशग्रन्थ रचा गया है। अतः अन्तरंग प्रमाण के आधार पर हरिषेण का समय ई. सन् की 10वीं शताब्दी का मध्यभाग सिद्ध होता है।
___ आचार्य हरिषेण ने पद्यबद्ध वृहत् कथाकोश ग्रन्थ लिखा है। इस कोशग्रन्थ में छोटी-बड़ी सब मिलाकर 157 कथायें हैं, और ग्रन्थ का प्रमाण 'अनुष्टुप् छन्द' में 12,500 (साढ़े बारह हजार) श्लोक हैं। आचार्य सोमदेवसूरि
आचार्य सोमदेव महान् तार्किक, सरस साहित्यकार, कुशल राजनीतिज्ञ, प्रबुद्ध
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भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ