Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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साथ आगम-शास्त्र के भी ज्ञाता थे। अतः असम्भव नहीं कि इनकी रचनायें भी रही हों, जो आज उपलब्ध नहीं हैं। आचार्य सुमति
आचार्य सुमतिदेव का उल्लेख सन्मति-टीकाकार के रूप में पाया जाता है। सुमतिदेव की यह टीका 11वीं शताब्दी के श्वेताम्बराचार्य अभयदेव की टीका से लगभग तीन शताब्दी पहले की होनी चाहिये।30
श्रवणबेलगोला के अभिलेख-संख्या 54 में भी सुमतिदेव का उल्लेख आया है; यह अभिलेख शक-संवत् 1050 का है। सुमतिदेव अच्छे प्रभावशाली तार्किक हुये हैं, जिनका स्थितिकाल 8वीं शताब्दी के लगभग रहा है। तत्त्वसंग्रह और शिलालेख के उल्लेख बतलाते हैं कि आचार्य सुमतिदेव प्रमाण और नय के विशिष्ट विद्वान् हैं। तार्किक के रूप में इनकी ख्याति आठवीं, नौवीं शताब्दी में पूर्णतया व्याप्त रही है। आचार्य कमारनन्दि
आज कुमारनन्दि की कोई रचना उपलब्ध नहीं है। पर उनके तथा उनके ग्रन्थ के उल्लेख कई स्थानों पर प्राप्त होते हैं। आचार्य विद्यानन्द ने अपने ग्रन्थ प्रमाण-परीक्षा, पत्र-परीक्षा और तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक में कुमारनन्दि का उल्लेख किया है। आचार्य विद्यानन्दि के उद्धरणों से प्रकट है कि कुमाननन्दि विद्यानन्द के पूर्ववर्ती आचार्य हैं। इन्होंने वादन्याय का प्रणयन किया था, जिसकी कतिपय कारिकायें विद्यानन्दि ने अपने ग्रन्थों में उद्धृत की हैं। नागमंगल-ताम्रपत्र में भी कुमारनन्दि का उल्लेख आया है।
कुमारनन्दि को 'समस्त विद्वल्लोक का परिरक्षक' और 'मुनिपति' कहा है। इससे सम्भावना है कि विद्यानन्दि द्वारा उल्लिखित और वादन्याय के कर्ता तार्किक कुमारनन्दि का ही इसमें गुणकीर्तन है। इसमें इतना स्पष्ट है, कि आचार्य कुमारनन्दि एक प्रभावशाली तार्किक एवं 'वादन्यायविचक्षण'-ग्रन्थकार थे। आचार्य वज्रसूरि
ये वज्रसूरि देवन्दि-पूज्यपाद के शिष्य द्राविड़ संघ के संस्थापक वज्रनन्दि जान पड़ते हैं। ‘हरिवंशपुराण' में इनके सम्बन्ध में कहा है
. वज्रसूरेविचारिण्यः सहेत्वोर्बन्धमोक्षयोः।
___ प्रमाणं धर्मशास्त्राणां प्रवक्तृणामिवोक्तयः॥ अर्थात् जो हेतु-सहित बन्ध और मोक्ष का विचार करनेवाली हैं, ऐसी श्री वज्रसूरि की उक्तियाँ धर्मशास्त्रों का व्याख्यान करने वाले गणधरों की उक्तियों के समान प्रमाणरूप हैं।
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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