Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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दिया जाता रहा है। वीरसेनस्वामी ने 'जयधवला' की प्रशस्ति में लिखा है कि भरत - चक्रवर्ती की आज्ञा के समान जिनकी भारती 'षट्खण्डागम' में स्खलित नहीं हुई। अनुमान है कि वीरसेनस्वामी के समय से ही सिद्धान्तविषयज्ञ को 'सिद्धान्तचक्रवर्ती' कहा जाने लगा है। निश्चयतः आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तग्रन्थों के अधिकारी विद्वान् थे। यही कारण है कि उन्होंने धवलासिद्धान्त का मंथन कर 'गोम्मटसार' और जयधवला - टीका का मंथन कर 'लब्धिसार' ग्रन्थ की रचना की है।
आचार्य नेमिचन्द्र देशीयगण के हैं। इन्होंने अभयनन्दि, वीरनन्दि और इन्द्रनन्दि को अपना गुरु बतलाया है। वस्तुतः अभयनन्दि के वीरनन्दि, इन्द्रनन्दि और नेमिचन्द्र ये तीनों ही शिष्य थे। वयः और ज्ञान में लघु होने के कारण नेमिचन्द्र ने वीरनन्दि और इन्द्रनन्दि से भी अध्ययन किया होगा ।
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आचार्य नेमिचन्द्र का शिष्यत्व चामुण्डराय ने ग्रहण किया था। यह चामुण्डराय गंगवंशी राजा राचमल्ल का प्रधानमन्त्री और सेनापति था। उसने अनेक युद्ध जीते थे और उसके उपलक्ष्य में अनेक उपाधियाँ प्राप्त की थीं। वह 'वीरमार्त्तण्ड' कहलाता था। 'गोम्मटसार' में 'सम्मत्तरयणणिलय' सम्यक्त्वरत्ननिलय, ‘गुणरयणभूषणं'गुणरत्नभूषण, 'सत्ययुधिष्ठिर '28, 'देवराज '29 आदि विशेषणों का प्रयोग किया है। इन चामुण्डराय ने श्रवणबेलगोला (मेसूर ) में स्थित विन्धयगिरि पर्वत पर बाहुबलि स्वामी की 50 फीट ऊँची अतिशय मनोज्ञ प्रतिमा प्रतिष्ठित की थी।
चामुण्डराय का घरेलू नाम 'गोम्मट' था। उनके इस नाम के कारण ही उनके द्वारा स्थापित बाहुबलि की मूर्ति गोम्मटेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुई है। इसी 'गोम्मट' उपनामधारी चामुण्डराय के लिये नेमिचन्द्राचार्य ने अपने 'गोम्मटसार' नामक ग्रन्थ की रचना की है। अतएव यह स्पष्ट है कि गंगनरेश राचमल्लदेव के प्रधान सचिव और सेनापति चामुण्डराय का आचार्य नेमिचन्द्र के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है।
आचार्य नेमिचन्द्र का समय ईस्वी सन् की 10वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध या विक्रम-संवत् 11वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध है। आचार्य नेमिचन्द्र आगमशास्त्र के विशेषज्ञ हैं। इनकी प्रसिद्ध रचनायें हैं • गोम्मटसार, त्रिलोकसार, लब्धिसार, एवं क्षपणासार । आचार्य नरेन्द्रसेन
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अमृतचन्द्र के 'तत्त्वार्थसार' की शैली पर आचार्य नरेन्द्रसेन ने 'सिद्धान्तसारसंग्रह' नामक ग्रन्थ रचा है। शैली में समानता होने पर भी दोनों के नामों के अनुरूप विषय में अन्तर है। तत्त्वार्थसार 'तत्त्वार्थसूत्र' के अनुरूप है, पर 'सिद्धान्तसार-संग्रह ' में सिद्धान्त-सम्बन्धी ऐसे विषय चर्चित हैं, जो 'तत्त्वार्थसूत्र' और उसकी टीकाओं के अतिरिक्त अन्यत्र भी प्राप्त हैं।
लाडवागड़ संघ में 'धर्मसेन' नाम के दिगम्बर मुनिराज हुये। उनके पश्चात् क्रमशः शान्तिषेण, गोपसेन, भावसेन, जयसेन, ब्रह्मसेन और वीरसेन हुये । वीरसेन के
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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