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दूसरा भाग।
पाँचवाँ पाठ।
पंत्र पाए । पाप पांच होते है। १-हिमा, २-झठ, ३-चोरी, ४- घुशील. ५-परिग्रह।
१-हिमा-प्रमाद से अपने व दुसरे के प्राणोंको घात करने व दिल दखानेको हिमा कहते हैं । इस पापके करनेवाले को हिमक, निर्दयी. हत्याग कहते हैं । इसलिये --
जीवनकी करुणा मन धार ।
यह सब धर्मामे है यार ॥ २-ठ-जिर वान या जिम चीजको जमा देखा हो गामा कराया जमा सुना हो. उमको वमा कहना मो Fट इस पाप करने वाले इंटे दगाशन कहलाते है । महि .
टचन मन पर मतलाय । मारक पर गा मा ।।