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(गागली, घुईयाँ), सुरण, तरबूज, तुच्छ फल (जिस फलमें वीज न पड़े हों) बिलकुल अनन्तकाय वनस्पति आदि पदार्थोके खानेमें अनंत स्थावर जीवोंका घात होता है।
शराब, अफीम, गांजा, भंग, चरस, तंबाकू वगैरह प्रमाद वढ़ानेवाली चीजें है । भक्ष्य होनेपर भी जो हितकर (पथ्य) न हों उन्हे अनिष्ट कहते हैं। जैसे खॉसीके रोगवालेको बरफी हितकर नहीं है। जिसको उत्तम पुरुष बुरा समझे, उन्हे अनुपसेव्य कहते हैं । जैसे लार, मूत्र आदि पदार्थों का सेवन । इनके सिवाय नवनीत ( मक्खन ) मुखे उदम्बर फल, चमड़ेमे रक्खे हुए हींग, घी, आदि पदार्थ । आठ पहरसे ज्यादहका संधान ( आचार ) व मुरब्बा, कॉजी, सब प्रकारके फूल, अजानफल, पुराने मूंग, उड़द, वगैरह द्विदलान, वर्षाऋतुमें पत्तेवाले शाक और विना दले हुए उडद मूंग वगैरह द्विदल अन्न भी अभक्ष्य है। चलित रस, खट्टा दही, छाछ तथा विना फाड़ी विना देखी हुई सेम, राजभाष, (रोसा) आदिकी फली आदि भी अभक्ष्य है।
प्रश्नावली। १ अभक्ष्य किसे कहते हैं ? क्या सब ही शाक पात अभक्ष्य हैं ? यदि कोई महाशय सब्जी मात्रका त्याग कर दे, परन्तु और सब चीजें खाता रहे तो बताओ वे अभक्ष्यका त्यागी है या नहीं ? ___२ अनिष्ट और अनुपसेव्यसे क्या समझते हो ? प्रत्येकके दो दो उदाहरण दो।
३ द्विदल क्या होता है ? क्या तमाम अनाज द्विदल हैं ? यदि नहीं, तो कमसे कम चार द्विदल अनाजोंके नाम बताओ।