Book Title: Balbodh Jain Dharm Part 01
Author(s): Dayachand Goyaliya
Publisher: Daya Sudhakar Karyalaya

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Page 107
________________ ( ३३) मकानके वाहर नहीं जाऊँगा तो उसके देशव्रत * समझना चाहिये । ३ बिना प्रयोजन ही जिन कामोंमें पापका आरंभ हो उन कामोका त्याग करना, अनर्थदण्डव्रत है । इस व्रतका धारी न कभी किसीको वनस्पति छेदने, जमीन खोदने वगैरह पापके कामोंका उपदेश देता है, न किसीको विष (जहर ) शस्त्र ( हथियार ) वगैरह हिंसाके उपकरणोंको माँगे देता है, न कपाय उत्पन्न करनेवाली कथाएँ सुनता है, न किसीका बुरा विचारता है, और न वेमतलव व्यर्थ जल बखेरता है। और न आग जलाता है । कुत्ता बिल्ली वगैरह जीवोंको भी जो मांस खाते हैं, नहीं पालता। शिक्षाव्रत। शिक्षाव्रत उन्हें कहते हैं जिनसे मुनिव्रत पालन करनेकी शिक्षा मिले। शिशावत ४ हैं:-१ सामायिक, २ प्रोषधोपवास, ३ भोगोपभोगपरिमाण, ४ अतिथिसंविभाग। १ मन, वचन, काय और कृत, काग्नि, अनुमोदना करके नियत समय तक पाँचो पापोंका त्याग करना और सुषम __ *दिग्वत और देशव्रतसे यह न समझना चाहिए विनिम्बाहर जाना अथवा संसारका जान प्राप्त करना हुन है। इनका मदन हम अपने लोभ और आरम्भको जिममें हम दृप कुछ भी नहीं कर सकते हैं, कम करें । केवल मनी इच्छाओंकी का अभिप्राय है । आप चाहे अपने दाने दाग कि हद उसकी जरूर कर लें। पछी

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