Book Title: Balbodh Jain Dharm Part 01
Author(s): Dayachand Goyaliya
Publisher: Daya Sudhakar Karyalaya

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Page 123
________________ (४९) १२ किसी दुष्ट पुरुषके गाली वगैरह देनेपर भी क्रोध न करके क्षमा धारण करना, आक्रोशपरीषह है। १३ किसी दुष्ट पुरुष द्वारा मारे पीटे जानेपर भी क्रोध और क्लेश नहीं करना, वधपरीषद है । १४ भूख प्यास लगने अथवा रोग हो जानेपर भी भोजन औषधादि वगैरह नहीं माँगना, याचनापरीपह है । १५ भोजन न मिलने अथवा अंतराय हो जानेपर क्लेश न करना, अलाभपरीपह है। १६ बीमारीका दुःख न करना रोगपरीषह है। १७ शरीरमे काँच, सुई, काँटे, वगैरहके चुभ जानेका दुःख सहन करना तृणस्पर्शपरीषह है । १८ शरीरमें पसीना आजाने अथवा धूल मिट्टी लग जानका दुःख सहन करना और स्नान नहीं करना, मलपरीषह है । १९ किसीके आदर सत्कार अथवा विनय प्रणाम वगैरह न करनेपर बुरा न मानना, सत्कारपुरस्कारपरीषह है। २० अधिक विद्वान् अथवा चारित्रवान् हो जानेपर भी मान न करना, प्रज्ञापरीपह है। २१ अधिक तपश्चरण करनेपर भी अवधिज्ञान आदि न होनेसे क्लेश न करना, अज्ञानपरीपह है । ___ २२ बहुत काल तक तपश्चरण करनेपर भी कुछ फलकी प्राप्ति न होनेसे सम्यग्दर्शनको दृपित न करना अदर्शनपरीपह है। चारित्र-आत्मस्वरूपमे स्थित होना चारित्र है । इसके

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