Book Title: Balbodh Jain Dharm Part 01
Author(s): Dayachand Goyaliya
Publisher: Daya Sudhakar Karyalaya

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Page 125
________________ इसी प्रकार संवरपूर्वक निर्जरा होते होते, जब सब कोंका क्षय हो जाता है और केवल आत्माका शुद्ध स्वरूप रह जाता है, तभी वह आत्मा ऊर्ध्वगमनस्वभाव होनेसे तीनों लोकोके ऊपर जा विराजमान होता है और इसीका नाम मोक्ष है। __ पदार्थ । ___ इन्हीं सात तत्त्वोमे पुण्य और पाप मिलानेसे ९ पदार्थ कहलाते हैं। पुण्य । पुण्य उसे कहते हैं जिसके उदयसे जीवोंको इष्ट वस्तु सुख सामग्री वगैरह मिले । जैसे किसी आदमीको व्यापारमें खूब लाभ हुआ, घरमें एक पुत्र भी पैदा हुआ और पढ़ लिखकर उच्चपदंपर नियत हुआ, ये सब पुण्यके उदयसे समझना चाहिए। पाप। पाप उसे कहते हैं कि जिसके उदयसे जीवोको दुःख देनेवाली चीजे मिले । जैसे कोई रोग हो गया अथवा पुत्र मर गया अथवा धन चोरी चला गया, ये सब पापके उदयसे समझना चाहिये। विद्या और जातिकी बढ़वारी करना, परोपकार करना, धर्मका पालन करना ऐसे कामोसे पुण्यका बंध होता है और जूआ खेलना, झूठ बोलना, चोरी करना, दूसरेका कुरा विचारना ऐसे बुरे कामोसे पापका बंध होता है ।

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