Book Title: Balbodh Jain Dharm Part 01
Author(s): Dayachand Goyaliya
Publisher: Daya Sudhakar Karyalaya

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Page 130
________________ (५६) केवलदर्शनावरण उसे कहते हैं जो केवदर्शन न होने दे। निद्रा उसे कहते हैं जिसके उदयसे नींद आवे । निद्रानिद्रा उसे कहते हैं जिसके उदयसे पूरी नींद लेकर भी फिर सोवे । प्रचला उसे कहते जिसके उदयसे बैठे ही सो जाय अर्थात् सोता भी रहे और कुछ जागता भी रहे। प्रचलाप्रचला उसे कहते हैं जिसके उदयसे सोते हए मुखसे लार वहने लगे और कुछ आंगोपांग भी चलते रहे। स्त्यानगृद्धि उसे कहते हैं जिसके उदयसे नींदमे ही अपनी शक्तिसे बाहर कोई काम कर ले और जागनेपर मालूम भी न हो कि मैंने क्या किया है। वेदनीयकर्म-सातावेदनीय और असातावेदनीय, ये दो वेदनीयकर्मके भेद हैं । इनके दूसरे नाम सवेद और असद्वेद हैं। सातावेदनीय उसे कहते हैं कि जिसके उदयसे इंद्रियजन्य सुख हो । असातावेदनीय उसे कहते हैं जिसके उदयसे दुःख हो । मोहनीयकर्म-मोहनीयकर्मके मूल दो भेद हैं । १ दर्शनमोहनीय, चारित्रमोहनीय । दर्शनमोहनीय उसे कहते हैं जो आत्माके सम्यग्दर्शन गुणका घात करे। चारित्रमोहनीय उसे कहते हैं जो आत्माके चारित्र गुणका घात करे। १ तत्त्वोंके सच्चे श्रद्धान याने विश्वास-यकीन करनेको सम्यग्दर्शन कहते हैं।

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