Book Title: Balbodh Jain Dharm Part 01
Author(s): Dayachand Goyaliya
Publisher: Daya Sudhakar Karyalaya

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Page 135
________________ (६१) हुंडकसंस्थान )—इस नामकर्मके उदयसे शरीरकी आकृति यानी शकल सूरत वनती है। समचतुरस्रसंस्थान नामकर्मके उदयसे शरीरकी आकृति ऊपर नीचे तथा वीचमे ठीक बनती है। न्यग्रोधपरिमंडलनामकर्मके उदयसे जीवका शरीर बड़के पेड़की तरह होता है अर्थात् नाभिसे नीचेके भाग छोटे और ऊपरके बड़े होते हैं। स्वातिसंस्थाननामकर्मके उदयसे शरीरकी शकल पहलेसे विलकुल उलटी होती है यानी नाभिसे नीचे अंग बड़े और ऊपरसे छोटे होते हैं। कुब्जकसंस्थाननामकर्मके उदयले शरीर कुवड़ा होता है। वामनसंस्थाननामकर्मके उदयसे शरीर वौना होता है। हुंडकसंस्थाननामकर्मके उदयसे शरीरके अंगोपांग किसी खास शकलके नहीं होते हैं । कोई छोटा कोई बड़ा, कोई कम, कोई ज्यादह होता है । ६ संहनन ( वजर्पभनाराचसंहनन, वज्रनाराचसंहनन, नाराचसंहनन, अर्द्धनाराचसंहनन, कीलकसंहनन, असंप्राप्तासपाटिकासंहनन )--- इस नामकर्मके उदयसे हाडोका बन्धन विशेप होता है। वजर्पभनाराचसंहनन नामकर्मके उदयसे वजके हाड़ वज्रके बेठन और वजकी कीलियाँ होती है। वजनाराचसंहननामकर्मक उदयसे वजके डाढ़ वजकी कीली होती है, परन्तु येठन वजो नहीं होते है।

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