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(५७) दर्शनमोहनयिके ३ भेद हैं:-मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्प्रकृति ।
मिथ्यात्व उसे कहते हैं जिसके उदयसे जीवके यथार्थ तत्त्वोंका श्रद्धान न हो।
सम्यग्मिथ्यात्व उसे कहते हैं जिसके उदयसे मिले हुए परिणाम हो जिनको न तो सम्यक्त्वरूप ही कह सकते हैं
और न मिथ्यात्वरूप । ___ सम्यक्प्रकृति उसे कहते हैं जिसके उदयसे यथार्थ तत्त्वोका श्रद्धान चलायमान या मलिनरूप हो जाय ।
चारित्रमोहनयिके २ भेद हैं:-कपाय और नोकपाय । कपायमोहनयिक १६ भेद हैं-अनंतानुवंधी क्रोध, अनंतानुबंधी मान, अनंतानुबंधी माया, अनंतानुवंधी लोभ; अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, अप्रत्याख्यानावरण मान, अप्रत्याख्यानावरण माया, अप्रत्याख्यानावरण लोभ, प्रत्याख्यानावरण क्रोध, प्रत्याख्यानावरण मान, प्रत्याख्यानावरण माया, प्रत्याख्यानावरण लाभ; संज्वलन क्रोध, संज्वलन मान, संज्वलन माया, संज्वलन लोभ ।
अनंतानुवन्धी नकोध, मान, माया. लोभ, उन्हें कहते हैं जो आत्माके सम्यग्दर्गन गुणका घात करे । जबतक ये कपाय रहती हैं सम्यग्दर्शन नहीं होता।
अप्रत्याख्यानावरण गांध, मान, माया, लोभ. उन्हे बहन जो आत्माके देशचारित्रको घाते रथाद जिनके उदयन पावकके १२ व्रत पालन करनेके परिणाम न हो।