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(४४) माया, लोभ, अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद, नपुंसकवेद।
४ योग-मनमें कुछ सोचनेसे या जिह्वासे कुछ बोलनेसे या शरीरसे कोई काम करनेसे हमारे मन, जिह्वा और शरीरमें हलन चलन होता है और इनके हिलनेसे हमारी आत्मा भी हिलती है । यही योग कहलाता है । आत्मामें हलन चलन होनेसे ही कोंका आस्रव होता है। योगके १५ भेद हैं१ सत्यमनोयोग, २. असत्यमनोयोग, ३ उभयमनोयोग, ४ अनुभयमनोयोग, ५ सत्यवचनयोग, ६ असत्यवचनयोग, ७ उभयवचनयोग,८ अनुभयवचनयोग,९ औदारिककाययोग, १० औदारिकमिश्रकाययोग, ११ वैक्रियककाययोग, १२ वैक्रियकमिश्रकाययोग, १३ आहारककाययोग, १४ आहारकमिश्रकाययोग, १५ कार्माणयोग । ___ इस प्रकार ५ मिथ्यात्व, १२ अविरति, २५ कषाय, १५ योग कुल मिलाकर आस्रवके ५७ भेद हैं।
वंध। बंधके भी दो भेद हैं-१ भाववंध, २ द्रव्यबंध । आत्माके जिन बुरे भावोंसे कर्मबंध होता है, उसको तो भावबंध कहते हैं और उन विकार भावोंके कारण जो कर्मके पुद्गल परमाणु आत्माके प्रदेशोके साथ दूध और पानीके समान एकमेक होकर मिल जाते हैं, उसे द्रव्यवंध कहते हैं । मिथ्यात्व