Book Title: Balbodh Jain Dharm Part 01
Author(s): Dayachand Goyaliya
Publisher: Daya Sudhakar Karyalaya

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Page 120
________________ (४६) समिति-ईर्या, भाषा, एपणा, आदाननिक्षेपण, उत्सर्ग ये पाँच समिति हैं। धर्म-उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य, ब्रह्मचर्य ये दस धर्म हैं। ___ अनुप्रेक्षा-बार वार चितवन करनेको अनुप्रेक्षा कहते हैं। अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, वोधिदुर्लभ, धर्म ये १२ अनुप्रेक्षा हैं । इनको १२ भावना भी कहते हैं। १ अनित्यभावना-ऐसा विचार करना कि संसारकी तमाम चीजें नाश हो जानेवाली हैं, कोई भी नित्य नहीं है । ___ २ अशरणभावना-ऐसा विचार करना कि जगत्मे कोई शरण नहीं है और मरणसे कोई वचानेवाला नहीं है । ३ संसारभावना-ऐसा चितवन करना कि यह संसार __ असार है, इसमे जरा भी सुख नहीं है। ४ एकत्वभावना-ऐसा विचार करना कि अपने अच्छे बुरे कर्मों के फलको यह जीव अकेला ही भोगता है, कोई सगा साथी नहीं बटा सकता। ५ अन्यत्वभावना-ऐसा विचार करना कि पुत्र ; स्त्री वगैरह संसारकी कोई भी वस्तु अपनी नहीं है ।। ६ अशुचिभावना-ऐसा विचार करना कि यह देह अपवित्र और घिनावनी है, इससे कैसे प्रीति करना चाहिए ? __७ आस्रवभावना-ऐसा चितवन करना कि मन वचन . * समिति और १० धर्मोंका स्वरूप पूर्वमें दिया जा चुका है।

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