Book Title: Balbodh Jain Dharm Part 01
Author(s): Dayachand Goyaliya
Publisher: Daya Sudhakar Karyalaya

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Page 112
________________ (३८) २ व्रतप्रतिमा-पाँच अणुव्रत, तीन गुणवत, चार शिक्षाव्रत, इन १२ व्रतोका पालन व्रतप्रतिमा है । इस प्रतिमाका धारी व्रती श्रावक कहलाता है। ३ सामायिकप्रतिमा-प्रतिदिन प्रातःकाल, मध्यान्हकाल और सायंकाल अर्थात् सवेरे, दुपहर शामको दो दो बड़ी विधिपूर्वक निरतिचार सामायिक करना सामायिकप्रतिमा है । __४ प्रोपधप्रतिमा-हरएक अष्टमी और चतुर्दशीको १६ पहरका अतिचार रहित उपवास अर्थात् प्रोपधापवास करना और गृह, व्यापार, भोग, उपभोगका तमाम सामग्रीका त्याग करके एकांतमें बैठकर धर्मध्यानमे लगना, प्रोपधप्रतिमा है । मध्यम १२ और जघन्य ८ पहरका प्रोपध होता है । ५ सचित्तत्यागप्रतिमा-हरी वनस्पति अर्थात् कच्चे फल फूल वीज पत्ते वगैरहको न खाना सचित्तत्यागप्रतिमा है। १ सामायिक करनेकी विधि यह है.-पहले पूर्व दिशाकी ओर मुंह करके खड़ा होकर नौ बार णमोकार मन्त्र पढ दण्डवत् करे, फिर उसी तरफ खडे होकर तीन दफे णमोकार मन्त्र पढ तीन आवर्त और एक नमस्कार ( शिरोनति ) करे और फिर क्रमसे दक्षिण पश्चिम और उत्तर दिशाकी ओर तीन तीन आवर्त्त और एक एक नमस्कार करे अनन्तर पूर्व दिशाकी ओर मुंह करके खड़े होकर अथवा चैठकर मन वचन कायको शुद्ध करके पांचों पापोंका त्याग करे, सामायिक पढे, किसी मन्त्रका जप करे अथवा भगवानकी शान्त मुद्राका या चैतन्य मात्र शुद्ध स्वरूपका अथवा कर्म-उदयके रसकी जातिका चिन्तवन करे, फिर अन्तमें खड़ा हो ९ दफे मन्त्र पढ दण्डवत करे सामायिकका उत्कृष्ट समय ६ घड़ी, मध्यम ४ घड़ी और जघन्य २ घडी है २४ मिनटकी एक घड़ीहोती है।

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