Book Title: Balbodh Jain Dharm Part 01
Author(s): Dayachand Goyaliya
Publisher: Daya Sudhakar Karyalaya

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Page 101
________________ ( २७ ) मुँहमें कुत्ते भी मूत जाते हैं । इसलिए शराव तथा भंग चरस वगैरह मादक वस्तुओका त्याग करना ही उचित है। = २ मांस खानेका त्याग करना मांस त्याग कहलाता है दो इंद्रिय आदि जीवोके घात करनेसे मांस होता है। मांसमे अनेक जीव हर समय पैदा होते और मरते रहते हैं ।मांसको छूनेसे ही वे जीव मर जाते हैं । इसलिए जो मांस खाता है, वह अनंत जीवोकी हिंसा करता है । इसके सिवाय मांसभक्षणसे अनेक प्रकारके असाध्य रोग हो जाते है और स्वभाव: क्रूर व कठोर हो जाता है, इस कारण मांसका त्याग करना ही उचित है। ३ शहद खानेका त्याग करना मधुत्याग है । शहद मक्खियोका वमन ( कय ) है । इसमें हर समय छोटे छोटे जीव उत्पन्न होते रहते हैं। बहुतसे लोग मक्खियोके छत्तेको निचोड़कर शहद निकालते हैं । छत्तेके निचोड़नेमे उसमेकी मक्खिया और उनके छोटे छोटे बच्चे मर जाते हैं और उनका सारा रस शहदमे आ जाता है जिसे देखनेसे ही घिन आती है । ऐसी अपवित्र वस्तु खाने योग्य नहीं हो सकती। उसका त्याग करना ही उचित है। ४-८ बड़, पीपर, पाकर, कठूमर, (कटहल ) और गूलर इन फलोंका त्याग करना पॉच उदुम्बरोका त्याग करना कहलाता है । इन फलोमे छोटे छोटे अनेक त्रसजीव रहते हैं। बहुतोमे साफ साफ दिखाई पड़ते हैं और बहुतोमें छोटे होनेसे दिखाई नहीं पड़ते । इन फलोके खानेसे वे सव जीव मर जाते है, इसलिए इनके खानेका त्याग करना ही उचित है।

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