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सिद्ध परमेष्ठी के मूलगुण ।
सिद्ध उन्हे कहते हैं, जो आठो कमका नाश करके संसारके बन्धनसे सदैवके लिए मुक्त हो गये हैं, अर्थात् जो फिर कभी संसारमे न आयेंगे। इनमे नीचे लिखे हुए ८ मूलगुण होते हैं । सोरठा ।
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समकित दरसन ज्ञान, अगुरुलेघू अवगाहना । सूच्छैम वीरजवान, निरार्बोध गुण सिद्धके ॥
इन गुणोंकी परिभाषा ( स्वरूप ) समझना इस पुस्तकके पढ़नेवाले विद्यार्थियोंकी शक्तिसे बाहर है, इसलिये केवल नाम मात्र दे दिये गए हैं ।
१ सम्यक्त्व, २ दर्शन, ३ ज्ञान, ४ अगुरुलघु, ५ अवगाहनत्व, ६ सूक्ष्मत्व, ७ अनन्तवीर्य, ८ अव्यावाधत्व |
आचार्य परमेष्ठी के मूलगुण ।
आचार्य उन्हें कहते हैं, जिनमें नीचे लिखे हुए ३६ मूलगुण हाँ । ये मुनियोंके संघके अधिपति होते हैं, और उनको दीक्षा तथा प्रायश्चित्त वगैरह दंड देते हैं ।
द्वादशै तप दश धर्मजुत, पार्ले पंचाचार । षट् आवशियगुप्तिगुन, आचरज पद सार ॥ अर्थात् - तप १२, धर्म १०, आचार ५, आवश्यक ६, गुप्ति ३ |
१ न हलका न भारी । २ एक एक आत्माके आकार में अनेक आत्माओं के आकारोंका रहना । ३ अतीन्द्रियगोचर । ४ बाधा रहित । ५ बारह । ६ छह ७ तीन गुप्ति । ८ आचार्य |
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