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वर्षा होना, ७ यक्ष देवोद्वारा चौसठ चमरीका इरना और ८ दुन्दुभि वाजांका वजना, ये आठ प्रतिहार्य हैं ।
अनन्त चतुष्टय |
ज्ञान अनंत अनंत सुख, दरस अनंत प्रमान | वल अनंत अरहंत सो, इष्टदेव पहिचान ||
१ अनंतदर्शन, २ अनंतज्ञान, ३ अनंतमुख, ४ अनंतवीर्य, ये चार अनंत चतुष्टय कहे जाते हैं । इनसे भगवानका ज्ञान, दर्शन, सुख तथा वल अनंत होता है, अर्थात् इतना होता है कि जिसकी कोई सीमा या हद नहीं होती है । इस प्रकार ३४ अतिशय, ८ प्रतिहार्य, ४ अनंत चतुष्टय सब मिलाकर ४६ गुण अरंहत भगवान के होते हैं ।
अठारह दोष |
जन्म जैरा तिरखा छुधा, विस्मैय आत खेद । रोग शोक मद मोह भय, निद्रा चिन्ता स्वेढे || राग द्वेष अरु मरणजुत, ये अष्टादर्श दोष । नहिं होते अरहन्तके, सो छवि लायक मोप ॥
१ जन्म, २ जरा ( बुढ़ापा ), ३ तृपा ( प्यास ), ४ क्षुधा ( भूख ), ५ विस्मय ( आश्चर्य ), ६ अरति ( पीड़ा ), ७ खेढ ( दुःख ), ८ रोग, ९ शोक, १० मद, ११ मोह ( अज्ञान ), १२ भय ( डर ), १३ निद्रा, १४ चिन्ता, १५ स्वेद ( पसीना ), १६ राग, १७ द्वेष और १८ मरण | ये अठारह दोप अरंहत भगवानमे नहीं होते हैं ।
३ आश्चर्य । ४ क्लेश । ५ पसीना ।
१ जिनका अन्त न हो । २ बुढापा I ६ अठारह । ७ मूर्ति |