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बारह तप । अनशन उनोदर कर, व्रतसंख्या रस छोर । विविक्तशयनासन धरे, काय कलेश सुठोर ॥ प्रायश्चित्त घर विनयजुत, वैयावत स्वाध्याय ।
पुनि उत्सर्ग विचारकै, धरै ध्यान मन लाय ॥ अर्थात्-१ अनशन ( भोजनका त्याग करना ), २ ऊनोदर (भूखसे कम खाना ), ३ व्रतपरिसंख्यान (भोजनके लिये जाते हुए घर वगैरहका नियम करना), ४ रसपरित्याग (छहों रस या एक दो रसका छोड़ना), ५ विविक्तशय्यासन (एकांत स्थानमे सोना बैठना), ६ कायक्लेश ( शरीरको कष्ट देना), ७ प्रायश्चित्त (दोषोका दंड लेना), ८ रत्नत्रय व उसके धारकोंका विनय करना, ९ वैयात्रत अर्थात् रोगी वृद्ध मुनिकी सेवा करना, १० स्वाध्याय करना ( शास्त्र पढ़ना) ११ व्युत्सर्ग ( शरीरसे ममत्व छोड़ना) और ध्यान करना ।
दश धर्म। छिमां मारदव, आरजव सत्यवचन चितपागे । संजम तप त्यागी सरव, आकिञ्चन तियत्याग ।। १ उत्तम क्षमा (क्रोध न करना), उत्तम मार्दव (मान न करना), ३ उत्तम आर्जव (कपट न करना), ४ उत्तम सत्य ( सच बोलना), ५ उत्तम शौच (लोभ न करना, अन्तःकरणको शुद्ध रखना), ६ उत्तम संयम (छह कायके जीवोकी दया पालना और पॉचो इंद्रियोको व मनको वशमे रखना), १क्षमा । २ चित्तको पाक वा शुद्ध रखना शौच है । ३ स्त्रीत्याग ।