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( १७ ) ७ उत्तम तप, ८ उत्तम त्याग ( दान करना), ९ उत्तम आकिञ्चन (परिग्रहका त्याग करना), १० उत्तम ब्रह्मचर्य ( स्त्री मात्रका त्याग करना)। छह आवश्यक ।
समता घर वंदन करै, नाना थुती बनाय ।
प्रतिक्रमण स्वाध्याय जुत, कायोत्सर्ग लगाय ।। १ समता (समस्त जीवोसे समता भाव रखना), २ वंदना ( हाथ जोड़ मस्तकसे लगाकर नमस्कार करना ), ३ पंचपरमेष्ठीकी स्तुति करना, ४ प्रतिक्रमण ( लगे हुए दोषोपर पश्चात्ताप करना ), ५ स्वाध्याय ( शास्त्रोको पढ़ना),६कायोत्सर्ग लगाकर अर्थात् खड़े होकर ध्यान करना ।
पञ्च आचार और तीन गुप्ति । दर्शन ज्ञान चरित्र तप, वीरज पंचाचार । ___ गोपै मन वच कायको, गिन छतीस गुन सार॥
१ दर्शनाचार, २ ज्ञानाचार, ३ चारित्राचार, ४ तपाचार, ५ वीर्याचार ये पाँच आचार हैं।
१ मनोगुप्ति ( मनको वशमे करना ), २ वचनगुप्ति (वचनको वशमें करना),३ कायगुप्ति ( शरीरको वशमें करना), ये तीन गुप्ति हैं। इस प्रकार सब मिलाकर आचार्यके ३६ मूलगुण हैं।
उपाध्याय परमेष्ठीके २५ मूलगुण । उपाध्याय उन्हें कहते हैं, जो ११ अंग और १४ पूर्वके पाठी हो । ये स्वयं पढ़ते और अन्य पासमे रहनेवाले भव्य
१ स्तुति । २ वशमें करे।
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