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( १८ ) जीवोंको पढ़ाते हैं । ११ अङ्ग और १४ पूर्वको पढ़ना पढ़ाना ही उपाध्यायकं २५ मूलगुण होते हैं ।
___ग्यारह अग। प्रथमहिं आचारांग गनि, दुजौ मूत्रकृतांग । ठाणअंग तीजौ सुभग, चौथौ समवायांग ।। व्याख्यापण्णति पाँचौं, ज्ञातृकथा पट जान । पुनि उपासकाध्ययन है, अंतःकृतदश ठान ।। अनुत्तरण उत्पाद दश, मूत्रविपाक पिछान ।
बहुरि प्रश्नव्याकरण जुत, ग्यारह अंग प्रमान ॥ १ आचारांग, २ सूत्रकृतांग, ३ स्थानांग, ४ समवायांग, ५ व्याख्याप्रज्ञति, ६ ज्ञातृकथांग, ७ उपासकाध्ययनांग, ८ अंतःकृतदशांग, ९ अनुत्तरोत्पादकदशांग, १० प्रश्नव्याकरणांग, और विपाकसूत्रांग ये ग्यारह अंग हैं।
चौदह पूर्व। उत्पादपूर्व अग्रायणी, तीजो वीरजवाद । अस्तिनास्तिपरवाद पुनि, पंचम ज्ञानप्रवाद ॥ छट्टो कर्मप्रवाद है, सतप्रवाद पहिचान । अष्टम आत्मप्रवाद पुनि, नवौं प्रत्याख्यान ॥ विद्यानुवाद पूरव दशम, पूर्वकल्याण महन्त ।
प्राणवादकिरिया बहुल, लोकविन्दु है अन्त ॥ १ उत्पादपूर्व, २ अग्रायणीपूर्व, ३ वीर्यानुवादपूर्व, ४ अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व, ५ ज्ञानप्रवादपूर्व, ६ कर्मप्रवादपूर्व ७ सत्यवादपूर्व, ८ आत्मप्रवादपूर्व, ९ प्रत्याख्यानपूर्व,