Book Title: Balbodh Jain Dharm Part 01
Author(s): Dayachand Goyaliya
Publisher: Daya Sudhakar Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ मालबोमजन । कहते हैं । दो या दोसे ज्यादा मिले हुए पुद्गल परमाणुआको स्कन्ध कहते हैं । आप, छाया, अन्धेरा, चादनी मत्र पुगलकी ‘पर्यायें ( हालतें ) हैं। २---धर्म द्रव्य उसे कहते है, जो जीव और पुद्गलांके चलनेमें सहकारी हो, अर्थात यह पदार्थ तमाम लोकमे पाया जाता है और अपनी आंग्बोसे देरनेमें नहीं आता। __ ३-अधर्म द्रव्य उसे कहते हैं, जो जीव और पुदलाके ठहरनमें महकारी हो। जैसे पंडकी छाया थके हुए मुमाफिरोंको ठहरनेमें सहकारी है । यह पदार्थ नमाम लोकमे पाया जाता है और अपनी आंखोसे देखनेमें नहीं आता । धर्म अधर्म द्रव्य जीव पुद्गलको प्रेरणा करके चलाते या ठहराते नहीं हैं, परन्तु जब वे चलते हैं अथवा ठहरते है उमसमय उनकी मदद करते हैं। हां, यह जरूर है कि यदि धर्म द्रव्य न हो तो कोई पदार्थ ठहर नहीं सकता। यहां धर्मअधर्मसे साधारण धर्म अधर्म न समझना चाहिये जिनके अर्थ पुण्य पापके हैं। ४-आकाश उसे कहते हैं, जो अन्य चीजोंको अवकाश नोट-पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन पाच प्रकारके अजीवोंमें एक जीव द्रव्य और मिलानेसे छ. द्रव्य हो जाते हैं। इन छहों द्रव्योंमें से काल द्रव्यको छोडकर इंए पांच द्रव्य पञ्चास्तिकाय कहलाते है । द्रव्य कायवान नहीं है। उनका एक एक अणु अलग अलग है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145