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बालबोध जैन मर्म । हमारे मनुष्य आयु कर्मका उदय है और घोड़का जीव तिर्गत्र शरीरमे रुका हुआ है, उसके तिर्यञ्च आयु कर्मका उदय है।
__बहुत हिंसा करनेसे, बहुत आरंभ और परिग्रह रखनेसे नरक आयु बंधती है, अर्थात ऐसा करनेसे यह जीव नरकमें जाता है।
छल कपट कग्नेसे तिर्यञ्च होता है। थोडा आरंभ और थोडा परिग्रह रखने से मनुष्य होता है।
व्रत उपवास करनेसे, शांति-पूर्वक भूख, प्यास, गर्मा, और सर्दीकी बाधा सहन करनेसे देव होता है। ___ नाम कर्म उसे कहते है, जो आत्माको अनेक प्रकार परिणमावे, अर्थात जिसके उदय होनेसे तरह तरहका शरीर
और उसके अंगोपांग बने जैसे चित्रकार (चितेग ) अनेक प्रकारके चित्र बनाता है । कोई मनुष्यका, काई हाथीका, कोई स्त्रीका, कोई बैलका, किसीका हाथ लम्बा, किसीका छोटा, कोई कुबडा, कोई बोना । इसी प्रकार नाम कर्म इस जीवको कभी सुन्दर, कभी चपटी नाकवाला, कभी लम्बे दांतवाला, कभी कुबडा. कभी बौना, कभी काला, कभी गोरा, कभी सुरीली आवाजबाला, कभी मोटी आवाजवाला अनेक रूपसे परिणमाता है। हमारा शरीर और आंख नाक कान वगैरह सब नाम कर्म के उदसे बने है।
घमण्ड करना, आपसमें लड़ना, झुठे देवोंको पूजना, , चुगली खाना, किसीकी नकल करना, किसीका बुरा