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तीसरा पाट
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है, उसे भले बुरेका कुछ भी ज्ञान नहीं रहता और न यह भाई बहिन स्त्री पुत्रादिको पहचान सकता है। हमी प्रकार मोहनीय कर्म इस जीवको भुला देता है। माहनीय कर्मक उदयसे इस जीवको अपने भले बुरेका कुछ भी नान नहीं रहता और न वह बुरे कामसे डरता है। काम, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि सब मोहनीय कर्मक उदयने होते हैं। सोहनने क्रोधर्म आकर मोहनको मार टाला, रामने लोभम आकर गोविन्दके मालको लूट लिया, इससे समझना चाहिये कि सोहन और गमके मोहनीय कर्मका उदय है ।
मच देव शास्त्र गुरुको दोष लगानेसे व काम, क्रोध. नान, माया, लोभ, हिंमा वगैरह करनेसे मोहनीय कर्म बधता है।
आयु कर्म उसे कहते है, जो आमाको नरक, तिथंच मनुष्य और देव शरीरोमेंसे किसी एकमें रोक रक्खे । इस कर्मके कारण जीव इस संसारमें नानाप्रकार की योनियोमें भ्रमण करता हुआ काल व्यतीत करता है।
जैसे-एक मनुष्यका पेर काठमें ( खाटेमे ) फँसा हुआ है। अब वह काठ उस मनुष्यको उस स्थान पर रोके हुए है। जबतक उसका पैर काठमें फंसा रहेगा, तबतक मनुष्य दूसरी जगह नहीं जा सकता । इसी प्रकार आयु कम इस जीवको मनुष्य आदिके शरीरमें रोके हुए है । जब तक वह आयु कर्म रहेगा, तब तक यह जीव उमी शरीरमें रहेगा। हमारा । इस मनुष्य-शरीरमे रुका हुआ है, इसलिये समझना चा.