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बालबोध जैन अम ।
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करुना नहि लोनी ॥१८॥
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जलायो ।
थावरकी जनत न कीनी, उम्में पृथिवी बहु खोद कराई, महलादिक जागा चिनाई । विनगोल्यो पुनि जल ढोल्या, पंखात पवन विलोल्यो" ॥१९॥ हा ! हा! मैं अदद्याचा, बहु हरित जु काय विदारी । या मर्धि जीवन के खदी, हम खाये धरि आनन्दा ||२०|| हा ! हा ! परनाद पाई, विन देखे अनि जलाई । ता मध्य जीव जे आये, तेह परलोके सिवाये ||२१|| चीधो "अनशशि पिमायो वन विन शोध झाडु ले जगा बुहारी, चिट आदिक जीव जल छानि जिवानी" कीनी, मोहू पुनि डारि जु दीनी । नहि जल थानक पहुंचाई. किरियां विन पाप उपाई ||२३|| जल मलमोरि गिरिखायो, कृमिकुल बहु बात करायो । नदियन विच चीरें धुवावे, कोसन के जीव मराये ||२४|| अन्नादिकं शोध कराई, ता मध्य जीव निसराई " । तिनको नहि जतन करायो गलियारे धूप डरायो ॥ २५॥ पुनि द्रव्ये कमावन का, बहु आम्म्मे हिमा मात्रै ।
॥ २२॥
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१ - चित्तमें, २- जगह, ३-विना छना हुआ ४ - डाला ५ - हिलाई, ६ - दया नहीं करनेवाला, ७- नए की, ८- इसमे ९ - स्कन्ध समूह १० - मर गये 11 - चुना हुआ, १२- अनाज, १३- चिउट, १४ - पानी छान लेनेपर छने में जो जाव रह जाते हैं, यदि किस वर्तनपर वह छन्ना उलटकर रखद और ऊपरसे छना हुआ पानी डाल्द तो वे जीव उस पानी के साथ उस वर्तनम आ जाते है, उसी जीवोंसे भरे हुए पानीको जीवाना कहते हैं। पानी दोहरे छन्ने में बारीक धारसे छानना चाहिये और छने हुए पानीसे जिवानीको उसी जगह जहांसे पानी लिया है धोकर डाल देना चाहिये । १५ - क्रिया यत्न, १६- मोरियों में, १७ - लट कीडी आदि जीवोंके समूह, १८ वस्त्र १९ - अनाज, ६ विनवाना, २०- निकलवाये, २१- रुपया, २२ - हिंसा के साज समान ।