________________
तो
भाग।
दसरा पाठ। जिनेन्द्र गर्भकल्याणक . ( म्यान ५० रुपी पा ) पणविवि पंच परमगुरु, गुरुं जिनकामना । मकल सिद्धदातार सु, विधन विनाशनी ।। शारद अरु गुरु गोतम. सुमति प्रकाशन ।
मंगलकर चउ संघहि. पाप गानो । पापहि प्रणाशन गुणहि गरवा. दोष अष्टादर्श रहो । धर ध्यान कर्मविनाश केवलज्ञान अविचल जिन लगा ॥ प्रभु पंचकल्याणक विगजित, सकल सुर नर ध्यावहीं । त्रैलोक्यनाथ सुदेव जिनवर, जगत मंगल, गावहीं ॥ १ ॥
जाके गरभकल्याणक, धनपति आइयो । अवधिज्ञानं परवान, सु इन्द्र पठाईयो । रचि नव चारह योजन, नयरि मुहावनी । कनक ग्यणमणि मण्डित, मंदिर अति बनी ।।
१- नमस्कार करता ह २-महान, ३-श्री महावीरस्वामके मुख्य गण धरका नाम, ४-मुनि, प्रायिका, श्रावक, श्राविका-इनके समूहको कहते है, ५-बहुत,६-अठारह' दोषरहित, ७-ऐमा मान जिससे सप्तारके समस्त पदार्योको जाने, ८-अविनाशी, ९-भगवानके गर्भ, जन्म, नप, विलसान और मोक्ष ये पांच कल्याणक होते हैं अर्थात् इन पांचोंमे ही उत्सव होता है । '१०-तीनों लोकोंके स्वामी, ११-कुवेर, १२-एक प्रकारका ज्ञान जिससे मर्यादापूर्वक परोक्ष वस्तु भी प्रत्यक्ष जानते हैं. १३-भेजता है, १४ नगरी, १५-रत्न।