________________
१२] बालनोन जैन धर्म ।
उच्छव सहित चतुरेविधि, सुर हरगित भगे ।
जोजन सहस निन्यानवे, गगन उलंवि गये ॥ लंवि गये मुरगिरि जहां पांडके-बन विचित्र विगजही । पांडुक-शिला तहां अर्द्धचन्द्र. ममान मणि छवि छाजही ।। जोजन पचाम विशाल दुगुणायाम, वसु ऊँची पनी । वर अष्टमगले कनक कलशनि, सिंहपीट मुहावनी }}८
गचि मणिमण्डप शोभित मध्य सिंहामनी । थाप्यो पूरव मुख तहां प्रभृ कमलामनी ।। वाजहिं ताल मृदंग, भेरि वीणा बने । दुन्दुभि प्रमुख मधुर धुनि, और जु बाजने ।।
१-चार प्रकारके देव भवनवासी, व्यन्तर प्योतिाक और कत्यवामी, २-सुमनपर्वत एक लस्त्र योजन ऊँचा है, टम्म एक हजार योजन जमी नके मात्र है जेर ९९ हजार योजनकी ऊँचाई पर डक-वन ', ३आकाश, ४-५ इन जम्वृदीपक मध्यभागमे एक लाख याजन ऊना मुमेक पर्वत है। जिनमें हजार योजन जनीनके भीतर है। जमीनपर भद्रमाल वन है । पाचसी योजन ऊँचा नन्दनवन है। इससे बासठ हजार पाँचसो जन ऊँचा सोमनम बन और फिर उत्तीस हजार योजन ऊँचा पाडुकवन । इसी वनमे मध्यभागमे चारों दिशाओंमें एक एक स्फटिकमणिको शिला पड़ी हुई है, जिनका नाम पाडुक शिला है। वे शिलाए अष्टमगल द्रव्य
और तोरणा आदिकोंसे सुशोभित है । इनपर नजडित त्वर्णश्य' तिहासन रक्खे हुए है, जिनपर भगवानका अभिषेक हाता हे भरतभत्रम उत्पन्न हुए तीयाका अभिषेक दक्षिण दिशाकी पाडुक शिलापर इता है, ६वह शिला १०० ये जन लम्बी, ५० योजन चौडो, ८ येजन ऊंची है, ७-दुगुणं लाबी, ८-आठ, ९-अष्टमगलद्रव्य, १०-पद्मासन ११-बाजे।