Book Title: Bahetar Jine ki Kala
Author(s): Chandraprabhashreeji
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 13
________________ में मकई तोड़कर इकट्ठी कर रहा था। उधर से आते हुए व्यक्ति को देखकर उसने सोचा कोई अतिथि ब्राह्मण आ रहा है। यह सोचकर उसने उसको तीन मकई दी। मकई प्राप्त होने पर उस व्यक्ति ने आत्म-हत्या का विचार त्याग दिया। दशहरे का दिन जानकर उसने राजा भोज को इन्हें भेंट में देने का विचार किया किन्तु मार्ग में किन्हीं बालकों ने अवसर देखकर पोटली में से मकई निकालकर तीन अधजली लकड़ियाँ रख दी। वह व्यक्ति पोटली लेकर दरबार में चला गया। तीन अधजली लकड़ियों की भेंट देखकर मंत्रीगण एवं राजा क्रुद्ध हो गए। तभी वहाँ बैठे महाकवि कालिदास ने उस व्यक्ति के प्रति दया दिखाते हुए भोज से कहा – 'हे राजन् ! इन तीन अधजली लकड़ियों में एक रहस्य छिपा है।' राजा ने आश्चर्य से पूछा – 'लकड़ियों में रहस्य! कृपया आप मुझे बताइए।' कालिदास ने कहा – 'ये तीन लकड़ियाँ दर्शाती है कि इस विश्व में तीन महापुरुष हुए हैं। उन तीनों ने तीन बुराइयों को खत्म किया। पहले हैं आदिनाथ भगवान, जिन्होंने सम्पूर्ण कषायों को जलाकर मुक्ति प्राप्त की। दूसरे हैं हनुमान, जिन्होंने मान-कषाय के प्रतीक सोने की लंका दहन कर ख्यातिप्राप्त की। तीसरे अर्जुन हैं - जिन्होंने खाण्डव वन को भस्म किया। हे राजन् ! आप भी सम्पूर्ण ग़रीबी को जलाकर चौथी बुराई को ख़त्म कर सकते हैं । राजा भोज ने सोचा - कालिदास ठीक कह रहे हैं । मैं इसकी शुरूआत इसी ग़रीब की विपन्नता को दूर करके कर देता हूँ। राजा ने उस व्यक्ति को धन-धान्य से संपन्न कर दिया। पुण्य-पाप का, शुभाशुभ का खेल कब, कहाँ और कैसे किस ओर ले जाएगा, कुछ कहा नहीं जा सकता है। जो ग़रीब व्यक्ति दुःखों के कारण आत्म-हत्या की ओर अग्रसर हो रहा था उसके लिए जंगल में भी मंगल हो गया। इसी तरह पाप का उदय होने पर महल भी जंगल में तब्दील हो जाता है। उस समय व्यक्ति कुछ भी करे निराशा ही हाथ लगती है और पुण्यवान व्यक्ति मिट्टी में हाथ डाले तब भी उसे सोना मिलता है। बड़ी विचित्रता है कभी सुख के महल में रहने वाला राजा रंक बन जाता है और दर-दर की ठोकर खाता है। इराक का बादशाह सद्दाम हुसैन इसका साक्षात उदाहरण है और कभी 500 रुपये की नौकरी करने वाला धीरूभाई अंबानी रंक से धनवान बनकर महलों के सुख का उपभोग करता है। पाप-पुण्य के खेल को समझकर हमें न तो सुख में 12 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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