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और सौम्य था। अमुक व्यक्ति का व्यक्तित्व मेरे हृदय को छू गया। ऐसी अंतरणा जीवन में उतारने पर हमारा विकास होगा। इस प्रकार के सात्विक विचारों से हमारा मन निर्मल होगा, पवित्र होगा, स्वच्छ होगा। जीवन में सहजता, सौम्यता, सुन्दरता का प्रवेश होगा।
विकृत मन के कारण व्यक्ति काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, निंदा से ग्रसित हो जाता है और यहीं से पतन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। पतन किसी का भी हो सकता है फिर चाहे वह विद्वान हो या मूर्ख, अमीर हो या ग़रीब । एक बार जो सीढ़ी से फिसल गया, फिर वह गया काम से। इसलिए जीवन की हर सीढ़ी में सावधानी रखना आवश्यक है।
दो मित्र बलराम और श्याम शास्त्रों का अध्ययन करने के लिए आठ साल से बनारस में रह रहे थे। अध्ययन पूर्ण कर दोनों अपने गाँव लौट रहे थे। रास्ते में भीषण गर्मी थी। लू के थपेड़े चल रहे थे। उनसे बचने के लिए उन्होंने एक हवेली में 2-3 घंटे विश्राम करने के लिए आश्रय माँगा। मस्तिष्क पर तिलक, गले में जनेऊ, धोती, कुर्ता, थैले से युक्त उनको देखकर सेठ ने समझा ये कोई पंडित हैं।
सेठ अपने घर अतिथि विद्वान ब्राह्मणों को देखकर अत्यधिक आनन्द का अनुभव करने लगा। उनको स्वल्पाहार करवाकर स्नान के लिए निवेदन किया। बलराम स्नान करने गया। सेठ ने उनके जीवन, शास्त्राध्ययन एवं स्वाध्याय के बारे जानने के लिए श्याम के साथ सत्संग किया।
पंडित श्याम बलराम की अनुपस्थिति देखकर स्वयं की तारीफ़ करने लगा, उसने कहा मैं आपको क्या बताऊँ संस्कृत, व्याकरण, काव्य, न्याय, रामायण, महाभारत, गीता तो मेरे रोम-रोम में बस गए हैं । धाराप्रवाह संस्कृत, प्राकृत बोलना मेरे लिए गंगा प्रवाह की तरह है। वेद, पुराण तो मेरी जिह्वा पर है।
सेठ ने बलराम के लिए कहा वे पंडित जी भी विद्वान प्रतीत होते हैं । यह सुनते ही श्याम का मन ईर्ष्या से भर गया। उसने कहा - बलराम! वह तो बिल्कुल गधा है उसे कुछ नहीं आता। वह पूरा दिन इधर-उधर खेलने में, खाने-पीने, मौज-शौक में बिताता था।पंडित श्याम के मुख से ये वचन सुनकर सेठ जी हैरान रह गए उन्होंने मन में सोचा इन्होंने शास्त्रों का तो ज्ञान प्राप्त कर
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