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व्यसन + फैशन = टेंशन
सदा याद रखें कि बुराई के त्याग का संकल्प वस्तुओं को भेंट करने से अधिक श्रेष्ठ है ।
सुंदर वाक्य है 'दुल्लहे खलु माणुसे भवे' अर्थात् मनुष्य जन्म अत्यन्त दुर्लभ है। सभी शास्त्रों एवं धर्मगुरुओं का एक ही कथन है दुर्लभ मनुष्य जीवन से उत्तम धर्म का पालन करो, श्रेष्ठ आचरण करो । जीवन कल्याण की श्रेष्ठ बातें बार-बार सुनने के बावज़ूद भी मनुष्य अज्ञान एवं आसाक्तिवश शरीर का पोषण करने में उसे सजाने-संवारने में अपना समय व्यतीत करता है, पर आत्मा को पुष्ट करना भूल जाता है । आज का मनुष्य जिस ओर तीव्रता से अग्रसर हो रहा है वह है व्यसन और फैशन। ये दोनों मानव जीवन के महारोग है। मनुष्य एक बार यदि इन्हें पकड़ लेता है तो छोड़ता नहीं है। युवती फैशन में डूब रही है और युवक व्यसन में । वह इन दोनों महारोगों में मात्र गुण ही देखता है । इनके प्रति दोष दृष्टि बन्द हो जाती है। रोग दृष्टि ऐसी है जो कि इससे होने वाले अहित का चिंतन करने नहीं देती है ।
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व्यसन का अर्थ है बुरी आदत । 'व्यस्यति पुरुषं श्रेयस : इति-व्यसनम्' व्यक्ति को कल्याण मार्ग से विचलित करने वाले कार्य व्यसन हैं । मनुष्य
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