Book Title: Bahetar Jine ki Kala
Author(s): Chandraprabhashreeji
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 44
________________ जीवन सर्वस्व, आराध्यदेव महाप्रभु ईशु ने कहा – 'दुश्मन के साथ भी दोस्ती रखो।' आप ही बताइए इस जाने दुश्मन शराब का मैं कैसे त्याग कर दूं। इससे कैसे शत्रुता रखू। यदि मैं इसके साथ मित्रता नहीं रखूगा तो प्रभु के वचनों का उल्लंघन होगा। इसलिए मैं इसे छोड़ नहीं सकता। . ____ मनुष्य की ऐसी कुतर्क भरी धर्म की बातें करना दुर्भाग्य है। जब हमारा अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण नहीं रहता है, हम व्यसन, वासना के गुलाम होते हैं, तो इसी प्रकार की स्थिति होती है। यदि हम स्वतः किसी बुराई का त्याग नहीं कर सकते हैं तो हमें प्रेरणा प्राप्त करके स्व विवेक से बुराई का त्याग अवश्य करना चाहिए। ऐसे भी अनेक अवसर हुए हैं जिसमें कइयों ने बुराई का त्याग करके स्व कल्याण किया है। एक धनाढ्य व्यक्ति की शादी हुई। उसने अपने परिवार की प्रथा के अनुसार पत्नी को शीशे में जड़ा हुआ एक पत्र भेंट स्वरूप भेजा। नवविवाहिता ने जैसे ही वह पत्र पढ़ा वह हर्ष से नाच उठी। सब अपने मन में सोचने लगे ऐसा क्या उपहार मिला है जिसको प्राप्त कर यह इतनी ख़ुश हो रही है कि जितनी तो अपनी शादी के समय पर भी खुश नहीं थी। सभी ने दिखाने को कहा पहले तो उसने यह गुप्त रखने को कहा। फिर उसने कहा – मेरा जीवन आज धन्य हो गया है इससे बड़ा उपहार मेरे लिए कुछ भी नहीं है। मैं ही इसे पढ़ती हूँ उसने बताया इस पत्र में लिखा है कि 'मैं बहुत शराब पीता हूँ। सुहागरात के दिन भेंट रूप में मैं यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं जीवन की सबसे बड़ी बुराई शराब का आज से त्याग करता हूँ।' सदा याद रखें बुराई के त्याग की भेंट वस्तुओं के भेंट करने से अधिक श्रेष्ठ है। जुआ, मांस-भक्षण, सुरापान, वेश्यागमन, चोरी, शिकार और परस्त्री गमन ये सात व्यसन बर्बादी के कारण है। इन सात में से एक व्यसन का भी जो सेवन करता है वह सभी के उपहास का पात्र बनता है। ___हर कोई ऐसे व्यक्तियों से अपना पिण्ड छुड़ाना चाहता है पत्नी ऐसे पति से, पुत्र ऐसे पिता से, ऐसे भाई या मित्र से नफ़रत करने लगते हैं क्योंकि यह सबकी तबाही का, परेशानी का, चिंता का, बदनामी का कारण बन जाता है। ऐसा हुआ एक शराबी ने अखबार पढ़ते हुए अपनी पत्नी से कहा : आज खबर | 43 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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