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होती है। परिवार एवं समाज परस्पर अपेक्षाओं से जुड़ा हुआ है। परन्तु जो किसी से भी जितनी अपेक्षा रखता है वह व्यक्ति उतना ही दु:खी होता है । माँबाप यह चाहते हैं कि हमारी संतान बेटा और बहू हमारी सेवा करे। बेटा-बहू हमारा कहना माने। बेटा-बहू यह चाहते हैं कि माँ-बाप हमारी सम्पूर्ण सुखसुविधाओं का ध्यान रखें, पर जब यह पूर्ण नहीं होती है तो पहले व्यक्ति के विचारों में टकराहट होती है फिर व्यवहार में परिवर्तन होता है।
यद्यपि चाहे परिवार है या समाज अपेक्षा भाव के बिना चल नहीं सकता। यह एक बंधन है जो एक-दूसरे को बांध कर रखता है परन्तु जब अपेक्षा भाव में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है तो कठिनाई होती है व्यक्ति स्वार्थी हो जाता है। इसलिए संबंधों एवं व्यवहार को मधुर बनाए रखने के लिए त्याग वृत्ति अत्यन्त आवश्यक है। ___ बहुत पुरानी घटना है। कुछ राहगीर एक ट्रेन में जा रहे थे। एक आदमी जो भी उनके कोच में थे और जिसको सहायता की आवश्यकता थी करता जा रहा था। एक स्टेशन पर गाड़ी रूकी, काफी भीड़ थी। कोच में अनेक राहगीर चढ़ रहे थे उतर रहे थे। रात्रि हो चुकी थी। ट्रेन अपना समय होने पर चलने लगी। एक यात्री जो विकलांग उस आदमी के सामने खड़ा था। उस आदमी ने अपनी चद्दर बिछाई ओर विकलांग को सीट दे दी। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? तो उसने कहा यह मेरा कर्तव्य है क्योंकि मैं विकलांग होने पर भी यदि खड़ा होता तो यही इच्छा करता कि मुझे भी बैठने के लिए कोई स्थान दे दो। हम तो यह चाहे कि हमें कोई स्थान दे दे और स्वयं नहीं दे तो यह कैसे संभव है ? दूसरे हमारी सेवा करें और हम नहीं करें यह भाव हमारे में नहीं होना चाहिए। अपेक्षा भाव के व्यवहार में संकीर्णता की जगह विशालता होनी चाहिए।
दुनिया में कोई भी क्यारी ऐसी नहीं होगी जिसमें मात्र फूल ही फूल या काँटे ही काँटे हो। फिर हमारे व्यवहार में काँटों की शैय्या क्यों है ? कुछ ऐसे हैं जो सबके लिए फूल ही फूल बिछाते हैं। कुछ फूल और काँटे बिछाते हैं तो कुछ काँटे ही काँटे बिछाते हैं तो विनाश होते देर नहीं लगेगी।
मैंने एक घर में देखा कि घर गंदा पड़ा हुआ था और साफ-सफाई करने
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