Book Title: Bahetar Jine ki Kala
Author(s): Chandraprabhashreeji
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 89
________________ भी अपने कार्य को नहीं छोड़ते हैं तो सफल हो जाते हैं। स्वदोष दर्शन में जो प्रारंभ में मन अशांत होता है, हलचल होती है तो हमें उसका त्याग नहीं करना चाहिए, दोष-दर्शन से उत्पन्न वह अशांति हमें अन्ततोगत्वा शांति की ओर ले जाएगी। क्योंकि हमने अपने दोष को देख लिया, स्वीकार कर लिया तो पलभर भले ही अशांति मिले, पर उसके बाद तो शांति ही मिलेगी । मनुष्य के जीवन में जब तक अनुभव नहीं हो तब तक लाभ नहीं है मात्र शास्त्रों के अध्ययन से हमें अनुभव प्राप्त नहीं होगा। शास्त्र ज्ञान से मुक्ति नहीं है अनुभव ज्ञान से मुक्ति होती है क्योंकि शास्त्रों से हमें मार्ग मिलता है और अनुभव से हमें मर्म प्राप्त होता है। शास्त्रों से जीवन निर्माणकारी शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं पर आगे बढ़ने के लिए अनुभव सहायक होगा। हम यदि रास्ते में पड़े पत्थर से ठोकर खा जाते हैं तो पुनः ठोकर नहीं लगे हमें इस प्रकार की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। हमारे जीवन में अनेक बुराइयाँ, दोष-अवगुण है उनके शमन के लिए शास्त्रज्ञान एवं सुशिक्षा साधन है, मार्गदर्शक है, आदर्श भी है । जिस प्रकार पुष्प - फल-पत्ते से रहित वृक्ष का कोई मूल्य नहीं है लोग उसे ठूंठ कहते हैं उसी प्रकार सम्यक् दर्शन - ज्ञान- चारित्र के बिना आत्मा का कोई मूल्य नहीं है। पक्षी है पर उसके पंख नहीं है तो वह उड़ान नहीं भर सकता । मकान में टूटी ईंट हो तो उन्हें हटाया जाता है उसी प्रकार जीवन में एक-एक गुण को ग्रहण करेंगे, एक-एक दोष का दर्शन करके उसे हटाते जाएँगे तो जीवन भी अपनी ऊँचाइयों तक पहुँचेगा, उन्नतिशील होगा । गुणों से ही मानव जीवन उत्तम होता है । इसके लिए हमें क्षण भर के लिए ही सही पर सत्पुरुषों की संगति अवश्य करनी चाहिए। उनके गुणों का दर्शन करना चाहिए। जीवन में कोई-नकोई नियम इस तरह का अवश्य होना चाहिए ताकि गुणों का विस्तार होता रहे । मन ! यदि तुम बुद्धि कौशल पाने के लिए, आपदाओं को हटाने के लिए, सन्मार्ग पर चलने के लिए, कीर्ति पाने के लिए, असाधुता को दबाने के लिए, धर्म का सेवन करने के लिए, पाप के परिणाम को रोकने के लिए और स्वर्ग मोक्ष की सौख्य श्री का संचय करना चाहते हो तो गुणवानों की संगति करो। जैसे चन्द्रहीन आकाश शोभित नहीं होता वैसे गुणहीन नर भी शोभा नहीं पाता है । 888 | यदि उभय लोक में सुख पाना है तो गुण को ग्रहण करें । जहाँ किसी की । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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