Book Title: Bahetar Jine ki Kala
Author(s): Chandraprabhashreeji
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 101
________________ वर्षों का पाला-पोषा शरीर चिन्ता से कुछ दिनों में कुपोषण का शिकार हो जाता है। चिता चिन्ता समाप्रोक्ता, बिन्दु मात्र विशेषतः। चिता दहति निर्जिवं चिन्ता सजीवमप्यहो॥ चिता और चिन्ता में ज़्यादा फ़र्क नहीं है, केवल बिन्दु मात्र का अन्तर है। चिता तो मुर्दे को जलाती है किन्तु चिन्ता सजीव को अर्थात् जिन्दो को भी जला देती है। चिता एक बार जलाती है चिन्ता हज़ारों बार। अध्यात्म चिन्ता उत्तम है, मोह की चिन्ता मध्यम, काम भोग की चिन्ता अधम तथा दूसरों की चिन्ता अधमाधम है। सेनापति फील्ड मार्शल वेह्नल से किसी जिज्ञासु ने पूछा कि आपके सैनिक जीवन की सफलता का रहस्य क्या है ? उसने कहा - कैसी भी भयंकर परिस्थिति क्यों न हो, मैंने कभी भी अपने मन में चिन्ता नहीं आने दी। जिज्ञासा ने कहा - कल्पना कीजिए, आप युद्ध के मैदान में शत्रु से चारों ओर घिर गए हैं। क्या उस समय भी आपके मन में चिन्ता पैदा नहीं होगी? सेनापति ने मुस्कराते हुए कहा - आज दिन तक चिन्ता से कोई विपत्ति टली नहीं है । यदि उस समय चिन्ता ही करते रहे, समाधान नहीं करें तो और अधिक परेशानी हो जाएगी। विपत्ति पर विजय-वैजयन्ती फहराने के लिए हिम्मत की आवश्यकता है, चिन्ता की नहीं । हिम्मत की ही कीमत होती है। यदि हम नियमों का पालन करते रहे तो एक दिन सब ठीक हो जाएगा। संघर्ष एवं दिल दहलाने वाले अवसरों में भी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। धार्मिक श्रद्धा चिन्ता को रोकने की रामबाण दवा है। मनुष्य की सृष्टि जीने के लिए हुई है, मात्र जीवन को समझने के लिए नहीं। ___अपनी चिन्ता नहीं करो। क्या खाओगे, क्या पिओगे और क्या पहनोगे यह मत सोचो। मौज-शौक और खान-पान के अलावा जीवन का अपना विशेष महत्त्व है। इन उड़ते हुए पक्षियों को देखो वे अनाज नहीं बीते हैं, फसल नहीं काटते और भंडार भी नहीं भरते हैं, फिर भी परमात्मा की ऐसी व्यवस्था है कि उनका भरण-पोषण होता है। फिर आप तो ज्ञानवान, विवेकवान हैं उनसे अच्छी स्थिति में है। अभिव्यक्ति के लिए भाषा है। कार्य करने के लिए हाथ, 100 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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