Book Title: Bahetar Jine ki Kala
Author(s): Chandraprabhashreeji
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 107
________________ और मुँह तक ढके हुए वह सदा-सदा के लिए सो जाती है। बेटा जैसे ही कक्ष में पहुँचता है अपनी माँ को इस तरह लेटे देखता है समझ जाता है कि माँ नहीं है। पुत्र कुछ बोले उससे पूर्व अधिकारीगण एक लिफाफा थमाते हुए कहते हैं आपकी माँ जाते समय आपको बहुत याद कर रही थी उन्होंने कहा यह लिफाफा मेरे पुत्र को दे देना। वह बहुत बड़ा अधिकारी है उसके पास समय नहीं है। और हम लोग इनका दाह-संस्कार कर दें। आधा घंटा पूर्व ही इनका देह-विसर्जन हुआ है। पुत्र बिना कुछ बोले लिफाफा खोलता है। माँ के आँसुओं से भीगी चिट्ठी और एक काग़ज में कुछ लिपटा है । चिट्ठी पढ़ता है। प्रिय पुत्र, ___ तुम खुश रहते हुए इसी प्रकार तरक्की करना। तुम्हारे जीवन की व्यस्तता को देखकर मैंने सोचा कि तुमने अपनी माँ का इतना ध्यान तो रखा, पर हो सकता है तुम्हारी वृद्धावस्था में तुम्हारा पुत्र यह भी ना करे क्योंकि उसने तुम्हें माँ-बाप की सेवा करते देखा ही नहीं। इसलिए जो नोट तुम मुझे भेजते थे मैंने उन्हीं नोटों को तुम्हारी वृद्धावस्था के लिए संभाल कर रख दिए हैं । तुम काम में ले लेना। तुम्हारे बुढ़ापे में आश्रम के साथ अन्य खर्चों के लिए मेरी सोने की चूड़ी जमा कराई हुई है सो ले लेना। ___अभी तुम और बड़े अधिकारी बनो। अपना नाम रोशन करो। तुम अपने बाप को तो पहिले ही भूल चूके थे इसलिए उन्होंने इस संसार से जल्दी अलविदा ली। माँ के लिए भी तुम्हारे पास समय नहीं है। अपना समय मत गंवाना। मेरा दाह संस्कार आश्रम अधिकारियों को करने के लिए मैंने कह दिया है। तुम निरन्तर आगे बढ़ों यही मेरा शुभाशीर्वाद। तुम्हारी माँ पुत्र ने पत्र पढ़ा, पश्चाताप के दो आँसू गिर पड़े। वहाँ सब यह चर्चा कर रहे थे कि यह कैसा जीवन । बार-बार बुलाने पर भी बेटा-बहू देखने तक नहीं आए। जन्मदात्री माँ इस संसार से अन्तिम समय में तड़फ-तड़फ कर मर गई, चली गई, पर बेटे-बहू ने कभी खबर नहीं ली। 1061 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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