Book Title: Bahetar Jine ki Kala
Author(s): Chandraprabhashreeji
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 120
________________ होता, एक चार बर्तन भी ढंग से नहीं धो सकती । अब किसमें खाएगी। - पोते ने कहा • माँ बर्तन पुराने हो गए होंगे। रोज़ काम में लेने से घिस गए होंगे। बर्तन धोते समय अचानक टूट गए तो इसमें दादी का क्या दोष है ? आप तो दादी का इतना ध्यान रखती हो। अगर दादी को मिट्टी के बर्तनों में ही खाने का शोक है तो मैं बाजार से बर्तन ला देता हूँ । पोता बाजार गया और मिट्टी के बर्तनों की तीन जोड़ी ले आया। आकर वे बर्तन उसने दादी को देते हुए कहा कि दादी माँ एक जोड़ी में तुम भोजन करना और दो जोड़ी सुरक्षित रख लेना । दादी माँ ने कहा बेटा मुझे और जोड़ी की आवश्यकता नहीं है। मैं तो कई सालों से इसी में खा रही थी। यह तो ज़रा हाथ से यूँ ही छूट गई। माँ ने कहाबेटा इतने बर्तन लाने की क्या ज़रूरत थी। इस बुढ़िया के लिए तो एक जोड़ी ही काफी थे। तभी पोते ने कहा- माँ एक जोड़ी दादी की है दो जोड़ी आपके लिए। बुढ़ापे में आपको भी तो ज़रूरत पड़ेगी। हो सकता है आपके बेटा-बहू टूटने पर मिट्टी की थाली खरीदकर न लाए । सो मैंने दो थाली अभी से लाकर रख दी ताकि एक के फूटने पर दूसरी थाली काम आ जाएगी। दादी ने कहा बेटा यह तू क्या कह रहा है ? पर बहू ने जैसे ही यह शब्द सुने वह एकदम घबरा गई। अरे! मेरे कड़वे कर्मों का फल मुझे भोगना पड़े। इस प्रकार दादी से उनकी बदतर हालात का ख़्याल करके उसने अपनी सास से माफी मांगी तथा सेवा सुश्रुषा में लग गई । यह कैसी विडम्बना है कि विवाह के पूर्व अपनी माँ के प्रति जो श्रद्धासमर्पण की भावना रहती है, यह भावना विवाह के बाद आजकल काफी बदल है । जिस माँ की गोद में बैठकर बालक बड़ा होता है उसी माँ के पास पन्द्रह मिनट भी बैठने की फुर्सत नहीं है । माँ के वचन कर्कश लगते हैं पत्नी ही सब कुछ हो जाती है। ऐसे घरों की सुख-सम्पत्ति भी समाप्त होने लगती है । हमें माता-पिता द्वारा प्रदत्त संस्कारों की रक्षा करने का प्रयास करना चाहिए । इतिहास इस वर्णन से भी भरा हुआ है कि अनेकों कष्टों को सहकर माताओं ने अपने स्वार्थ को तिलांजलि दी तो सन्तान ने उन संस्कारों की रक्षा भी की। माँ के आदेश को प्राप्त करके आर्यरक्षित दृष्टिवाद का अध्ययन करते हैं | 119 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only

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