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तथा स्व कल्याण के साथ ही अपना तथा अपने परिवार का कल्याण करते हैं।
पशु-पक्षीयों में भी अपनी सन्तान के प्रति अनूठा प्रेम होता है तो मानव के रूप में जो माता है, उसके दिल में अपनी सन्तान के प्रति कितना प्रेम होगा यह शब्दातीत है। वह अपने प्राणों का बलिदान देकर भी अपनी सन्तान की रक्षा करना चाहती है।
महारानी विक्टोरिया की पुत्री का 10 वर्ष का पुत्र असाध्य रोग से घिर गया। उसके शरीर में भयंकर रोग फैल चुका था। वह मृत्यु शय्या पर लेटा था। छूत की बीमारी हो जाने के कारण डॉक्टरों ने यह खास हिदायत दी थी कि कोई भी उसके पास नहीं जाए।
एक बार सोते हुए रोगी बालक की अचानक निद्रा भंग होने पर वह दर्द के कारण कराहने लगा। माँ-माँ की पुकार करने लगा। अपने पुत्र की इस भयंकर वेदना को सुनकर माँ रह नहीं सकी वह भी चीखती हुई तुरन्त दौड़ती हुई अपने पुत्र के पास पहुँची तथा उसे अपनी गोद में ले लिया।
उसी समय एक नर्स वहाँ पहुँची। उसने कहा – बहिन जी! आप तो सुशिक्षित हैं, समझदार हैं, आपको इस बालक के पास आने के लिए पूर्णतया मना किया गया था, फिर भी आपने इस बालक को अपनी गोद.....
__ भावावेश में आकर बीच में ही वह बोल उठी क्योंकि मैं इसकी माँ हूँ। मुझे कोई नहीं रोक सकता। माँ तो सिर्फ माँ ही होती है। ____माँ तो वात्सल्य की साक्षात् मूर्ति होती है। उसके रोम-रोम में सन्तान के प्रति अपूर्व प्रेम का झरना सतत् बहता रहता है। माँ की तुलना जगत् में किसी से भी नहीं कर सकते हैं।
वर्तमान में माता-पिता की भक्ति, सेवा-सुश्रुषा की उपेक्षा करना भविष्य में स्वयं की उपेक्षा करवाने का निमंत्रण है। उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने की बजाय उनकी उपेक्षा करना वास्तव में भावी पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य के लिए खतरे की घंटी है। आदर्श पुत्र बनने के लिए हम श्रवण कुमार बनें। हमारा अस्तित्व माता-पिता के कारण की है। इसलिए हम उनके प्रति सदैव'मातृ देवो भव', 'पितृ देवो भव' का भाव रखें
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