Book Title: Bahetar Jine ki Kala
Author(s): Chandraprabhashreeji
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 102
________________ चलने के लिए पाँव है फिर किस बात की चिंता ? उसका उपयोग करो और उससे जो मिल जाए उसमें मस्त रहो । I परिस्थितियों से चिन्तित मत होइए, घुटने मत टेकिए। अजेय होने पर भी मुकाबला करो । अजेय होने पर भी निराश मत होवो, चिन्तित मत होओ, उसके विरुद्ध संघर्ष करो, भयभीत नहीं बनो, दूर मत भागो । जिसको बदल नहीं सकते हो उसको स्वीकार करने का विवेक रखो, भले-बुरे को समझो और व्यस्त रहो । फिजूल के तनाव युक्त करने वाले काम नहीं करके स्वयं को सद्कार्य में लगाओ । मुस्कराते रहो, दूसरों को सुखी करने का प्रयास करते हुए स्वयं के दुःखों को भूल जाओ। अपने भाग्य में आए हुए अच्छे बुरे को स्वीकार करते हुए सहज जीवन जीने का प्रयास करो । अंबानी बंधुओं के पास आज कोई कमी नहीं है फिर भी दिन-रात न जाने कौन-सी कमी को पूरा करने में लगे हुए हैं। खरबों का मालिक होने के बावज़ूद धीरू भाई अंबानी क्या अपने जीवन को एक दिन भी ज़्यादा बढ़ा पाएँ, धन से जीवन को खरीदा नहीं जा सकता है। इसका तो अंत नहीं है, पर जीवन का अंत ज़रूर है । जीवन का अंत हो उससे पहले हम अनंत की ओर बढ़ जाएँ । सुविधाओं की कभी-भी पूर्णता होने वाली नहीं है, पर श्वास की घड़ियां कभी-भी पूर्ण हो सकती है। श्वास पूर्ण हो उससे पहले हम शांति की ओर क़दम बढ़ा ले ताकि जीवन के संध्याकाल में मुक्ति के आनंद महोत्सव को घटित किया जा सके । Jain Education International For Personal & Private Use Only | 101 www.jainelibrary.org

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