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मेरा एक ऐसे व्यक्ति से मिलना हुआ जो पहले निरन्तर चिन्तित रहता था कि मेरे पास अमुक वस्तु का अभाव है, यह नहीं है, वो नहीं है। उसकी रात की नींद गायब थी, दिन को चैन नहीं था। मैंने उसे समझाया भाई इस प्रकार कल्पनाओं के ऊँचे महल बनाकर तुम स्वयं को नष्ट कर रहे हो, अमूल्य मानव जीवन को व्यर्थ ही गँवा रहे हो। यदि तुम्हें जीवन में सुख शांति से जीना है, अभाव की जिंदगी से ऊपर उठना है तो गुणों में अपने से ऊपर को देखो तथा समृद्धि में अपने से नीचे को देखो।
वह कहने लगा लोग दो-दो हज़ार के जूते पहनते हैं पर मैं हजार-पन्द्रह सौ के भी नहीं पहन सकता तो ए.सी. फ्लेट की बात ही कैसे करूँ। मैंने उसे 10-15 मिनट रोका एक विकलांग को बुलाया और उस व्यक्ति से कहा - तुम इसलिए दु:खी हो कि तुम्हारे पास शान-शौकत को प्रस्तुत करने वाले महंगे जूते नहीं हैं, पर इस व्यक्ति के पैर ही नहीं है फिर भी यह कितना प्रसन्न है । उस विकलांग व्यक्ति से प्रसन्नता का राज पूछा तो उसने कहा मेरे एक पैर, दो हाथ,
आँख, कान तो है ही। मैं अपना काम स्वयं कर सकता हूँ, पर दुनिया में अनेक लोग ऐसे हैं जो कुछ भी नहीं कर सकते, बैशाखी के सहारे एक ही स्थान पर पड़े-पड़े खाते-पीते हैं । फिर जो नहीं है उसका चिंतन करने से वे मुझे मिलने वाले नहीं हैं फिर क्यों न जो मेरे पास है मैं उसका आनन्द लूँ और अगर ईश्वर कृपा से वो मिल जाएँगे तो उसका भी आनन्द ले लूँगा यही मेरे जीवन की सुख-शांति का राज़ है। भला अब आप ही बताइए क्या ऐसे लोगों को दुनिया की कोई भी ताक़त या अभाव दुःखी कर सकता है। ___आपके दुःख का कारण दूसरे नहीं आप स्वयं ही बन गए हो। क्या हम भी कहीं अभाव के लिए तो चिन्तित नहीं रहते हैं। जो प्राप्त है उसका आनन्द लेकर उससे प्रसन्न होने वाले विरले ही होते हैं । जो प्राप्त है उसे देखें। प्रत्येक घटना के उज्ज्वल पक्ष को देखें। उपलब्ध वस्तुओं का आनन्द लें। अनुपलब्ध की चिन्ता छोड़ें। हमें यह चिन्तन करना चाहिए हम क्यों अभावों को देख रहे हैं ? सौन्दर्य के नन्दनवन में रहकर भी हम आनन्द का उपभोग क्यों नहीं कर रहे हैं? दूसरों की नकल नहीं कीजिए, अपने को पहचानिए स्वयं की जो खूबियाँ है उन्हें बाहर आने दीजिए। ऐसा करके हम अपने जीवन की खटास को मिठास
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