Book Title: Bahetar Jine ki Kala
Author(s): Chandraprabhashreeji
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 94
________________ पुत्र की आत्मा ने कहा- ये सभी लोग ठीक कह रहे हैं। मैंने ऐसा कर्म कहीं छिपकर किया था, जिसका मुझे परिणाम प्राप्त हुआ। __जीवन में किसी भी विपरित घटना घटने के पीछे हम स्वयं किसी-नकिसी रूप में उत्तरदायी हुआ करते हैं इसलिए उससे चिंतित होने की बजाय हम उसके कारण की ख़ोज करें और भविष्य में ऐसा न करने का संकल्प लें। साथ ही चिंता करने से किसी भी समस्या का हल नहीं होता बल्कि समस्या विकराल रूप धारण करने लगती है। हमें सकारात्मक चिंतन करते हुए उससे उबरने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि हम सभी जानते हैं कि चिन्ता करना अत्यधिक हानिकारक है । यह हमारी शक्ति का समूल नाश करती है, विचारों को भ्रान्त बनाती है तथा आकांक्षाओं को कुंठित करती है। चिन्ता से मानसिक रोग होते हैं इसलिए व्यक्ति को चिंता करने की बजाय जिस समस्या के कारण चिंता हो रही है उस समस्या का समाधान करके इससे ऊपर उठना चाहिए। ___व्यक्ति जब भूत और भविष्य का भार एक साथ वर्तमान में ढोकर चलता है तो वह लड़खड़ा जाता है, फिर चाहे कोई कितना भी पराक्रमी क्यों न हो। भूत से प्रेरणा लेकर भविष्य की योजना बनाकर आज को उसके अनुरूप सफल बनाकर हम वर्तमान में जीएँ। आज की परिधि में रहने का अभ्यास करें। एक व्यक्ति प्रभु से प्रार्थना कर रहा था – 'हे प्रभु। केवल आज का भोजन जुटा दो।' पास में खड़े लोग यह सुनकर हँसने लगे कि माँग कर भी क्या माँगा केवल आज का भोजन जुटा दो, कल क्या खाएगा? ज़रा ध्यान दीजिए कि यह प्रार्थना केवल आज के भोजन के लिए ही है इसमें कल की रोटी की प्रार्थना नहीं है। न ही यह है कि मुझे इतनी रोटी आज दे कि मेरा काम कुछ दिन चल जाए। कल की चिन्ता छोड़ दो। कल अपनी सुध स्वतः लेगा। आज की कठिनाइयाँ ही आज के लिए क्या कम है ? आप लोगों का यह कहना होगा कि 'कल की चिन्ता तो करनी पड़ेगी, परिवार में हैं, उसकी सुरक्षा के लिए बीमा भी करना है, लड़कियों की शादी करनी है, वृद्धावस्था के लिए भी बचत करनी | 93 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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