Book Title: Bahetar Jine ki Kala
Author(s): Chandraprabhashreeji
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 95
________________ ठीक है भविष्य के लिए योजनाएँ बनाइए। लेकिन उनके लिए आपको जीवन जीने की कला सीखनी होगी। कहने के अभिप्राय को समझना होगा। कल पर विचार अवश्य कीजिए, इस पर मनन कीजिए, योजनाएँ बनाइए, तैयारियाँ कीजिए, किन्तु उसके लिए चिन्ता मत कीजिए, चितिंत नहीं होइए। यदि जहाज डूब जाए तो उसे आप और मैं ऊपर नहीं ला सकते। जिस भी त्रुटि के कारण उसे डूबना था वह तो डूबा ही और डूबेगा भी। आप और मैं उसे नहीं रोक सकते। जो हो चुका उसके लिए सिर पीटने से तो यही अच्छा है कि त्रुटियों को सुधारें आगे की समस्याओं पर विचार करें। सोचें कि यदि ऐसी उलझनों से उलझे रहेंगे तो जीवन और समय दोनों नष्ट रहेंगे तथा जीना भी मुश्किल हो जाएगा। सही और ग़लत विचारधारा में मुख्य अन्तर यही है कि सही विचार धारा प्रयोजन और परिणाम पर आधारित है। उससे हम रचनात्मक कार्यों हेतु प्रेरित होते हैं । इसके विपरीत ग़लत विचार धारा अक्सर उद्वेग और स्नायु विघटन का हेतु बनती है। अभी हम भूत और भविष्य के संधि-स्थल पर खड़े हैं । भूत तो चला गया कभी लौटकर नहीं आएगा, भविष्य तीव्रता से हमारे समीप आ रहा है। वर्तमान की उपेक्षा करके हम पल मात्र के लिए भी दोनों में से एक के होकर शांति से नहीं जी सकते हैं। इससे हमारी शारीरिक एवं मानसिक शक्ति एवं शांति का ह्रास होता है। हमें जो प्राप्त हो रहा है उसी में संतोष कर लेना चाहिए। सूर्यास्त तक जो कोई भी मिठास, धैर्य, स्नेह और पवित्रता से रह सकता है इसी को जीना कहते हैं । जीवन की हमसे यही अपेक्षा है। सुखी जीवन तो वही है जो आज को अपना बना ले। और हो निश्चिन्त कह दे जी लिया बस आज मैं तो 'कल', जो करना हो तू कर ले। कल की चिन्ता क्यों करे? शाह शुजा की पुत्री अत्यधिक धर्म परायण और वैराग्यपूर्ण भावनाओं से 94/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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