Book Title: Bahetar Jine ki Kala
Author(s): Chandraprabhashreeji
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 86
________________ उपाय है। एक गाँव में दो परिवार के दस व्यक्ति अपना सामान पास के गाँव में बेचने गए। लौटते समय रास्ते में पड़ने वाली नदी अत्यधिक वेग में थी । वहाँ कोई नाव नहीं थी, पर सभी तैरने में कुशल थे। उन्होंने निश्चय किया कि तैरकर ही नदी के उस किनारे सब पहुँचेंगे। सब के पहुँचने पर इकट्ठे ही गाँव जाएँगे । सब नदी के पास पहुँचे, दूसरे किनारे पर पहुँचने पर मुखिया ने सबको गिनना प्रारंभ किया। वह बार-बार नौ तक गिनता । कोई भी दसवें व्यक्ति को नहीं गिन पा रहा था। चार-पाँच लोगों के द्वारा गिनने पर भी जब दस की गिनती नहीं हो पाई तो उन्होंने सोचा एक साथी रह गया वह नदी में डूब गया है। शोक में उन्होंने रोना प्रारंभ कर दिया। उन्हें जोर-जोर से रोते देखकर एक राहगीर वहाँ रुका और रोने का कारण पूछा। राहगीर ने सबको गिनना शुरू किया वे पूरे दस थे । यह सुनकर सभी को अपनी भूल का अहसास हुआ कि प्रत्येक गिनने वाला व्यक्ति सबको गिन रहा था, पर अपने-आपको नहीं गिन रहा था । सबको देख रहा था, पर स्वयं को ही नहीं देख पा रहा था । हम दूसरों के दोषों को देखने में लग रहे हैं अपने लिए नहीं सोचते, अपने दोषों को नहीं देखते हैं । प्रत्येक व्यक्ति स्वयं की ओर देखे, स्वयं को पहचाने । स्वयं को ढूँढ़े। दूसरों के दोषों को, अवगुणों को मत देखो। स्वयं के अवगुणों को देखो। देखने हैं तो दूसरों के गुणों को देखो। गुणानुरागी बनो । गुणानुरागी होने से गुण हमारी तरफ आकर्षित होंगे । जैसे पेट भरने के लिए अन्न की आवश्यकता होती है । बनाकर कोई दे देगा, परोस कोई देगा, खिला भी कोई देगा, पर स्वयं को चबाना होगा, पचाना होगा, तभी रक्त बनेगा। यदि आप कहें कि मैं भोजन नहीं करूँगा मेरे बदले अन्य कोई भोजन करे और पेट मेरा भर जाए तो काम नहीं चलेगा। क्योंकि जो व्यक्ति भोजन करेगा उसी का पेट भरेगा, स्वयं जितने, जिस प्रकार के अन्न का उपभोग करेंगे उसी के अनुसार फल की प्राप्ति होगी। इसी प्रकार हमें स्वयं को ही अपने दोषों को देखना होगा । उसमें सुधार करना होगा । हमें भली भाँति हेय - उपादेय को, ग्राह्य - त्याज्य को जानना होगा। अपनी दृष्टि को बदलना होगा । Jain Education International For Personal & Private Use Only | 85 www.jainelibrary.org

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