Book Title: Bahetar Jine ki Kala
Author(s): Chandraprabhashreeji
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 46
________________ बैंक में पैसे जमा करवाने गया था। सोमवार होने के कारण कैश काउंटर पर भीड़ थी। जब मेरी बारी आई, तो मैंने देखा कि कैशियर महोदय ने जेब से गुटखे का पैकेट निकाला और मुँह में डाल लिया। चंद सेकेंड बाद ही उन्होंने लाल पीक केबिन पर थूक दी। जब मैंने उन्हें मना किया, तो वे बोले, 'क्या यह तुम्हारा घर है ?' उनकी बात से मुझे इतना दुःख नहीं हुआ जितना उनकी सोच पर। क्या यही हमारा कर्त्तव्य है, हमारी नैतिकता है ? हम अपने घरों को स्वच्छ रखते हैं, पर सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। यदि हम ही देश की सम्पत्ति के साथ ऐसे खिलवाड़ करेंगे, तो दूसरों को किस मुँह से मना करेंगे ? शास्त्रों में सात व्यसन बताए गए हैं, पर आज सात क्या अनगिनत व्यसन होते जा रहे हैं। नये-नये व्यसन घुसते जा रहे हैं जो व्यक्ति को अध: पतन की ओर ले जाते हैं । व्यसन कोई भी हो दुःख में डालने वाला है, श्रेय मार्ग से गिराने वाला है। इन्द्रियों एवं मन पर संयम नहीं रखने से व्यक्ति दुर्व्यसन के गर्त में गिरता जाता है । बाढ़ का रूप धारण करती हुई नदी की तीव्र धारा जैसे किनारों को काट देती है वैसे ही व्यसन मानव जीवन के गुण, तेज, आत्मशक्ति के तट का ह्रास कर देते हैं । इस कटाव से व्यक्ति का जीवन नीरस, तेजहीन एवं फीका हो जाता है । उसकी श्री एवं बुद्धि दोनों नष्ट होती है। विवेक एवं विकास का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है । मन की शांति और चेहरे की कांति दोनों नष्ट हो जाती है । आत्मा की स्वाभाविक ज्योति और निर्मलता आच्छादित हो जाती है । आज का मानव आराधना को छोड़कर वासना और फैशन का गुलाम बनता जा रहा है कुछ हद तक बन चुका है। जब तक हम वासना, व्यसन, फैशन के मकड़जाल से मुक्त नहीं होंगे तब तक उपासना के क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकेंगे । इतिहास इस बात का साक्षी है कि व्यसन, फैशन ने अपने आकर्षण में जीवों को फँसाकर अनेक जीवों को विष पान कराकर उनके जीवन को बर्बाद किया है । फिर भी आश्चर्य है कि शक्ति संपन्न मानव इसके जाल से मुक्त होने का कोई पराक्रम क्यों नहीं करता है । एक व्यक्ति को कत्ल के मुकदमे में सेशन न्यायालय से आजीवन Jain Education International For Personal & Private Use Only | 45 www.jainelibrary.org

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