Book Title: Bahetar Jine ki Kala
Author(s): Chandraprabhashreeji
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 45
________________ छपी है कि अपनी कॉलोनी में शराब की दुकान से ज़हरीली शराब पीने से बीस शराबी मर गए। पत्नी ने कहा : मैंने कितनी बार कहा है तुमसे, अपनी कॉलोनी की दुकान के अलावा शराब मत पिया करो लेकिन तुम हो कि सुनते ही नहीं। अब मौका गया न हाथ से। ऐसे लोगों के दिमाक का दिवाला भी निकल जाता है एक आदमी को बढ़िया किस्म की शराब उपहार में मिली। वह बड़े उत्साह के साथ नाचताकूदता घर जा रहा था। बोतल मिलने की खुशी में वह इतना मगन हो गया कि सामने से आती हुई मोटरसाइकिल वाला उसे टक्कर मार गया। वह उठा। सड़क पार कर रहा था कि उसे महसूस हुआ कि उसके पैर से कुछ गर्म-सी चीज़ बह रही है। वह भगवान से प्रार्थना करने लगा. 'हे भगवान, काश ये खन हो।' अगर इंसान चाहे तो अच्छी आदतों को अपनाकर प्रभु बन सकता है नहीं तो ये व्यसन उसे पशु बनाकर छोड़ देते हैं । एक व्यसनी ने पूछा – आदमी और जानवर में क्या अंतर है ? मैंने कहा - आदमी अगर शराब पी ले, तो जानवर बन जाता है, लेकिन जानवर को शराब पिलाओ, वह आदमी नहीं बन सकता। __ अतएव दुर्लभ प्राप्य मानव जीवन को सफल एवं सार्थक बनाने के लिए व्यसनों से मुक्त रहना अत्यन्त आवश्यक है। व्यसन-मुक्त जीवन ही सार्थक है। ये व्यसन अपने साथ अन्य दुर्व्यसनों को भी ले आते हैं। गुटका, जर्दा, शराब, भांग, अफीम, चरस, गांजा आदि जितने भी नशीले पदार्थ हैं ये हमारे स्वास्थ्य पर इस प्रकार का आक्रमण करते हैं कि व्यक्ति इलाज कराते-कराते तंग आ जाते हैं। पहले इन वस्तुओं के भक्षण में फिर इनसे हुई बीमारियों के इलाज में पैसा पानी की तरह बहाते हैं, पर अपने खोये हुए समय, आनंद एवं स्वास्थ्य को पुनः प्राप्त नहीं कर सकते हैं । व्यसनों में पैसे का दुरुपयोग करतेकरते व्यक्ति दरिद्र हो जाता है, स्वास्थ्य के अभाव में वह जीवन में परिश्रम नहीं कर पाता है फिर परिणामस्वरूप यहीं से शुरू होते हैं कलह, द्वेष, झगड़े, तनाव आदि। नशीली वस्तुओं का सेवन मनुष्य को गैर जिम्मेदार, आलसी, प्रमादी, धर्मध्यान के प्रति अरुचिवाला एवं असंयमी बना देता है। व्यक्ति न केवल मानवता को वरन् देश हित को भी व्यसन के चलते तिलांजलि दे देता है। एक व्यक्ति ने कल बताया कि वह पिछले सोमवार को 44 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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