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में ही असावधानी रखी, दुर्विचार या दुर्भाषा को दूर नहीं किया, उन्हें पपोलना शुरू कर दिया तो वे हमको पछाड़ देंगे, हम पर हावी हो जाएंगे। हम लाख प्रयत्न करेंगे फिर भी वे जल्दी से बाहर नहीं निकलेंगे।
एक माँ ने मुझे बताया कि मेरा बेटा शुरू से पढ़ाई में काफी होशियार था। वह कक्षा में हमेशा प्रथम आता था। जब नौवीं कक्षा में हमने उसका दाखिला दूसरे स्कूल में करवाया, तो उसकी दोस्ती एक ऐसे लड़के से हो गई, जो पढ़ाई में कमज़ोर था और बातूनी था। वह किसी-न-किसी बहाने हमारे घर आ जाता था और अपना व मेरे बेटे का समय बर्बाद करता।
वार्षिक परीक्षा के नतीजे में मेरे बेटे की द्वितीय श्रेणी आई, जिसे देखकर मैं बहुत दुःखी हो गई। मुझे लगा, नतीजा बिगड़ने का एकमात्र कारण यही बातूनी दोस्त है। मैंने अपने बेटे से उस लड़के का नतीजा पूछा, तो पता लगा कि वह फेल हो गया है। यह बात सुनकर, मेरे मुँह से निकला, 'चलो, अच्छा ही हुआ, कम-से-कम अब तो उससे पीछा छूट ही जाएगा।' ।
मेरे ये शब्द सुनकर मेरा बेटा तुरंत बोला, 'मम्मी, आपने तो हमेशा मुझे यही समझाया है कि किसी के बारे में बुरा मत सोचो, बुरा मत बोलो और आप ख़ुद ही ऐसा कह रही हैं। मेरे अंक कम आने पर जब आप इतनी परेशान हो रही हैं, तो उसके पेरेन्ट्स कितनी दुखी होंगे। मम्मी मैं अगले साल खूब पढ़ाई करूँगा और चाहता हूँ कि वह भी पढ़े और पास हो जाए।' छोटे-से बच्चे के मुँह से ऐसी समझदारी की बात सुनकर मुझे अपनी कथनी-करनी में अतर का अहसास हआ। इस घटना के बाद मैंने आज तक कभी भी दूसरों का बुरा नहीं सोचा। मेरे से जितना हुआ दूसरों के लिए अच्छा करने का प्रयास किया। ___मूंग का एक दाना भी भूमि में बो दिया जाए है तो बीज से पौधा बन जाता है। पौधे में फलियाँ लगती हैं अनेक दाने बन जाते हैं। इसी प्रकार हमारी एक छोटी-सी शुभ-अशुभ भावना से, विचार से अनेकानेक शुभ-अशुभ फल प्राप्त हो जाते हैं। भावनाओं में अर्थात् विचारों में अद्भुत शक्ति होती है। महान् विचार कार्य रूप में परिणत होने पर महान् कर्म बन जाते हैं । विचारों का जीवन
के साथ अत्यन्त घनिष्ट सम्बन्ध है। इसलिए यह समझ लेना आवश्यक है कि विचार अदृश्य रूप में काम करते हैं और उनसे उसी प्रकार के परिणाम निकलते
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