Book Title: Bahetar Jine ki Kala
Author(s): Chandraprabhashreeji
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 65
________________ बेहतर व्यवहार है श्रेष्ठ उपहार अपने व्यवहार को ऐसा बनाओ लोगों को लगे जैसे आप उन्हें फूलों का गुलदस्ता भेंट कर रहे हो । व्यक्तित्व निर्माण के जितने भी चरण हैं उनमें सबसे प्रमुख चरण है व्यावहारिक होना । सद् व्यवहारी और सदाचारी जहाँ जाता है वहाँ प्रेम पाता है और अपनी ओर से प्रेम लुटाता है । मनुष्य का अधिकांश समय किसी-नकिसी के साथ निकलता है । जीवन की सफलता के लिए व्यवहार और व्यवसाय दोनों ही ऐसे हों जिनसे किसी का अहित न हो क्योंकि यही जीवनविकास का मूल मंत्र है । सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन की सफलता का प्रथम सोपान सद्व्यवहार है। जब तक शरीर है, तब तक मुट्ठी भर अन्न की आवश्यकता अवश्य ही पड़ेगी। उस समय तक व्यवहार-व्यवसाय दोनों ही करने होंगे। इसलिए व्यवहार अवश्य करो, किन्तु व्यवहार करते समय विवेक रखो। 64 | - एक पति ने पत्नी को डाँटते हुए कहा • कितनी बार कहा है कि मेरी सब्जी में नमक कम डाला करो । मेरा ब्लड प्रेशर पहले ही ज़्यादा है। तुम Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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