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समझती क्यों नहीं ? पत्नी रसोई में पति के लिए गर्मागर्म फुल्के सेंक रही थीं। 'मैंने जानबूझ कर ऐसा नहीं किया, ज़ल्दबाजी में ऐसा हुआ है।' वह वहीं से बोली । लाओ मैं इस सब्जी में एक टमाटर, दो-तीन प्याज डालकर पुन: पका डालती हूँ। नमक भी कम हो जाएगा। वह धीमे स्वर में कह बैठी ।
नहीं..... रहने दो। मुझे नहीं करना नाश्ता - वाश्ता। पति गुस्से में बड़बड़ाता कार्यालय चला गया। पत्नी काम में जुटी रही, उसने भी नाश्ता नहीं किया। दोपहर तक पति ने फोन तक भी नहीं किया, उसे । नहीं तो कार्यालय के दूरभाष से तीन-चार बार उससे रोज़ बतिया लेते ।
दोपहर में जब पति लंच करने आए तो पत्नी ने दरवाज़े पर मुस्कुरा कर उनका स्वागत किया। 'देखो मैंने तुम्हारी मन पसंद डिश बनाई है, उंगलियाँ चाटते रह जाओगे ।' वह खाना परोसते कहने लगी ।
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उसे भूख सता रही थी । वह खाने पर टूट पड़ा था। उसने पत्नी से इतना भी नहीं पूछा कि तुमने नाश्ता किया भी या नहीं। खाना खाते अचानक लाईट बंद हो गई, गर्म खाना खाते-खाते पसीना बहा जा रहा था । पत्नी झट से पंखा झलने लगी। वह खाना खाते सोच रहा था, उसकी पत्नी उसका कितना ख्याल रखती है । कितनी अच्छी है वह । पत्नी, पति को खाना खाते देखकर प्रसन्न थी । उसे ऐसा अनुभव हो रहा था मानो उसकी अतृप्त आत्मा की भूख मिटती चली जा रही थी । सद् व्यवहार क्रोधी को भी शांत बना देता है और दुश्मन को भी मित्र । सद्व्यवहार के लिए अगर कोई जखरी तत्व है तो वह सही दृष्टि ।
किसी से भी व्यवहार बिगड़ता हैं तो उसके कारणों में मूल कारण है दूसरों के प्रति दोष दृष्टि । दूसरों के दोष देखने से हमारी आँख, मन और वाणी दूषित हो जाते हैं । आज का मनुष्य इतना व्यस्त है कि अपने परिवार और व्यापार को एक पल भी नहीं छोड़ सकता है। फिर भी ज़रा-सी बात पर लड़ाई-झगड़े और फिर कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाते हुए लोग नज़र आ जाते हैं ।
'महाराज ! मुझे ऐसा मंत्र
एक भाई मेरे पास आए । मुझसे बोले दीजिए, जिसके बल पर कोर्ट में मेरी जीत हो । '
मैंने पूछा - 'कौन - सा केस है ?"
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